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(१४३) ब-बालभावातिक्रमानुक्रमेणावाप्तयौवनोऽयं भोगसमर्थ इति विज्ञात भगवत्स्वरूपाभ्यां मातापितृभ्यां प्रशस्ततिथिनक्षत्र-मुहूर्तेषु नरवीरनृपति सुताया यशोदायाः पाणिग्नहणं कारितम्...।
-कल्पसूत्र किरणावलि, पत्र ६२-२ क-एवं बाल्यावस्थानिवृत्तौ संप्राप्त यौवनो भोगसमर्थो भगवान् मातापितृभ्यां शुभे मुहूर्ते समरवीरनृपपुत्री यशोदां परिणायितः ।
___-कल्पसूत्र सुबोधिका टीका पत्र २६०
२-समणस्सणं भग० भज्जा जसोया कोडिन्ना गुत्तेणं समरणस्स एं० धूया कासवगोत्तेणं, तीसेणं दो नामधिज्जा
एवमा०-अगुज्जा इ वा पियदंसरणा इ वा...! ---आचाराङ्ग, द्वितीय श्रुतस्कन्ध, भावनाधिकार सूत्र ४००, पृष्ठ ३८९ ३-हमने पृष्ठ १११ पर रायपसेनी में वर्णित ३२-वें नाटक का विवरण दिया
उसमें 'चरम कामभोग' का भी स्पष्ट उल्लेख है। ४-तिहि रिक्खम्मि पसत्थे महन्त सामन्तकुल पसूयाए । कारिति पाणिगहणं जसोअवररायकन्नाए ॥ ३२२ ॥
-आवस्सय निज्जुत्ति पृष्ठ ८५
५-उम्भुक्कबालभावो कमेण अह जोव्वणं अणुप्पत्तो।
भोगसमत्थं गाउं अम्मा पिअरो उ वीरस्स ।। ७८ ॥ भा.॥ तिहि रिक्खम्मि पसत्थे महन्तसामन्तकुलपसूआए। कारन्ति पाणिगहणं जसोअवररायकण्णाए !! ७९ ॥ भा.॥
—आवश्यक हारिभद्रीय टीका १८२-२ ६- इसी प्रकार की गाथा आवश्यक की मलयगिरि की टीका (पत्र २५६-२
में भी है।
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