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(१४२) ने अपनी भार्या पद्मावती की कुक्षि से उत्पन्न यशोदा के पाणिग्रहण के लिए राजा सिद्धार्थ के पास प्रस्ताव भेजा ।
वर्द्धमान के माता-पिता उनकी विरक्त मनोदशा से परिचित थे । अतः उनके माता-पिता ने उसके मित्रों द्वारा कुमार वर्द्धमान की इच्छा जानने का प्रयल किया । भगवान् महावीर ने स्त्री-सम्भोग और संसारी जीवन सम्बंधी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा-“मोहग्रस्त मित्रो ! तुम्हारा ऐसा क्या आग्रह है; क्योंकि स्त्री आदि परिग्रह भव-भ्रमण का ही कारण है । और, 'भोगे रोगभयम्' भोग में सदा रोग का डर बना हुआ है। मेरे माता-पिता के जीवित रहता हुआ मेरे वियोग का दुःख न हो, इस हेतु से दीक्षा लेने को उत्सुक होता हुआ भी, मैं दीक्षा नहीं ले रहा हूँ।" इस प्रकार भगवान् कह रहे थे कि राजा सिद्धार्थ की आज्ञा से माता त्रिशला वहाँ स्वयं आयीं। भगवान तत्काल खड़े हो गये और उनके प्रति आदर प्रकट करते हुए बोले---"हे माता आप आयीं यह अच्छा हुआ। लेकिन, इससे अच्छा तो यह था कि आप मुझे ही बुला लेतीं।" त्रिशला देवी ने कहा-'हे पुत्र मैं जानती हूँ कि आप संसारवास से विरक्त हैं और केवल मेरे प्रेम के कारण गहवास में रह सकते हैं । फिर भी, इतने से मुझे तृप्ति नहीं होती है। मैं तो आपको वधू-सहित देखना चाहती हूँ। तभी मुझे तृप्ति होगी। यशोदा नामक राजपुत्री से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लो। तुम्हारे पिता भी तुम्हारा विवाहोत्सव देखने को उत्कण्ठित हैं।" माता के इस आग्रह पर भगवान ने अपनी स्वीकृति दे दी । और, शुभ मुहूर्त में भगवान् का विवाह यशोदा के साथ सम्पन्न हुआ। ___ कुछ लोग भगवान के विवाह के सम्बन्ध में शंकाशील है; परन्तु भगवान् के विवाह की चर्चा प्रायः सभी ग्रन्थों में मिलती है। उनके कुछ प्रमाए हम यहाँ दे रहे हैं :१-अ-भारिया जसोया कोडिण्णा गुत्तेणं...।
-कल्पसूत्र सूत्र १०९
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