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________________ (११३) 'ब्राइकेट' में लिखा है कि जिसके सम्बंध में माना जाता है कि वह बच्चों को पकड़ता है तथा क्षति पहुँचाता है। उसी स्थान पर यह अंकित है कि यह रूप अथर्ववेद में मिलता है। उसी ग्रन्थ के पृष्ठ ५६८ पर 'नेजमेष' शब्द आया है और उसका अर्थ दिया गया है 'एक देव जो बच्चों से शत्रुता रखता है।' यहाँ संदर्भ रूप में गृह्यसूत्र दिया गया है । __ऋग्वेद के खिलसूत्र में तथा महाभारत (आदिपर्व, अध्याय ४५०, श्लोक ३७ पृष्ठ ८७ तथा शल्य पर्व, अध्याय ६७, श्लोक २४, पृष्ठ ११९) में भी 'नैगमेष' शब्द आया है। ____ इन ग्रन्थों के अतिरिक्त सुश्रुत, अष्टांगहृदय आदि चिकित्सा-ग्रन्थों में भी उसका नाम मिलता है। वैदिक साहित्य के अतिरिक्त बौद्ध-साहित्य में भी उसका नाम मिलता है और उसे यक्ष बताया गया है ('बुद्धिस्ट हाइब्रिड संस्कृत ग्रामर ऐंड डिक्शनरी', खंड २, पृष्ठ ३१२) वैजयन्ती-कोष (१८६३ में प्रकाशित) के पृष्ठ ७ पर 'नैगमेष' शब्द आया है । शब्द-रत्न-महोदधि भाग २, पृष्ठ १२४६ पर 'नैगमेष' शब्द आया है और बृहत् हिन्दी-कोष (सं० २००६) पृष्ठ ७१२ पर नजमेष और नैगमेय' दोनों शब्द मिलते हैं। जैन-साहित्य में उसे हरिएंगमेसी क्यों कहते हैं, इसका कारण बताते हुए कहा गया है "हरेरिन्द्रस्य नैगममादेशमिच्छतीति हरिनैगमेषी" अथवा "हरेरिन्द्रस्य नैगमेषी नामा देवः यो देवानन्दायाः। कुक्षेरिजिनमपहृत्य त्रिशालागर्भे प्रावेशयत् ( आ० म०) -अभिधान राजेन्द्र, खंड ७, पृष्ठ ११८७ कल्पसूत्र की टिप्पन (पृथ्वीचंद्र सूरि प्रणीत) में लिखा हैF 'हरिः' इन्द्र स्तत्सम्बन्धित्वाद् हरिः, नैगमेषी नाम 'सक्कदूए' शक्रदूतः - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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