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________________ (११२) 'द्वात्रिंशद्विधम् नाट्यविधि-नाट्यविषयवस्तुनो द्वात्रिंशद्विधत्वात् , तच्च यथा राजप्रश्नीयाऽध्ययने तथाऽवसेयम्' इति. . शतक ३, उद्देश १, पं० बेचरदास-सम्पादित, भाग २, पृष्ठ ४१) राजप्रश्नीय उपांग के इस वर्णन को ज्ञाताधर्मकथा की भी पुष्टि प्राप्त है। उसके १६-वें अध्ययन में 'जिन-प्रतिमा-वंदन' के प्रकरण में आता है एवं “जहा सूरियाभो जिणपडिमाओ अच्चेइ..." -ज्ञाताधर्मकथाङ्गम् सटीक, द्वितीय विभाग, पत्र २१७-२ पुरातत्त्व में गर्भपरिवर्तन गर्भ-परिवर्तन की यह मान्यता कुछ आज की नहीं लगभग २००० वर्ष पुरानी है। 'आालाजिकल सर्वे आव इंडिया' (न्यू इम्पीरियल सीरीज) वाल्यूम २० में 'मथुरा एंटीक्विटीज' के अन्तर्गत 'द' जैन स्तूप ऐंड अदर एंटीक्विटीज आव मथुरा" नाम से 'रिपोर्ट' प्रकाशित हुई है। इसके लेखक हैंवी० ए० स्मिथ (१६०१ ई०) । उसमें प्लेट नम्बर १८ पर "भगवा नेमेसो" लिखा है। उस प्लेट के सम्बन्ध में डॉक्टर बूल्हर ने लिखा है कि इसमें कल्पसूत्र के गर्भपरिवर्तन का चित्रण है। ('एपीग्राफिका-इंडिका' खंड २, पृष्ठ ३१४, प्लेट २) । उस 'प्लेट' के सम्बन्ध में पुरातत्वविदों का अनुमान है कि यह ईस्वी सन् के प्रारम्भ का अथवा उससे भी प्राचीन शिल्प है। (द' जैन स्तूप एण्ड अदर एंटीक्विटीज आव मथुरा, पृष्ठ २५) हरिणेगमेसी 'एपिग्राफिका इंडिका', खण्ड २, पृष्ठ ३१४ में डाक्टर वूलर ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जैनशास्त्रों में वर्णित हरिणेगमेसी वस्तुतः वही देवता है, जो वैदिक-साहित्य में 'नैगमेष' अथवा 'नेजमेष' नाम से उल्लिखित है। 'नैगमेष' अथवा 'नेजमेष' का प्रयोग वैदिक ग्रन्थों में कहाँ-कहाँ हुआ है, इसका विस्तृत विवरण पीटर्सबर्ग-डिक्शनरी (संस्कृत) में दिया गया है। मोनेयोर-मोनेयोर विलियम्स संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी (पृष्ठ ५७०) में 'नगमेष' शब्द का अर्थ लिखा है 'एक देव जिसका सर भेड़ा का है' (और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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