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(१=३)
"जब वह बच्चा बचपन पार करके समझवाला होगा और यौवन को प्राप्त कर लेगा, तो वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, पाँचवाँ इतिहास, छठाँ निघंटु आदि सर्व शास्त्रों का सांगोपांग जानने वाला होगा । वह उनके रहस्यों को समझेगा । जो लोग वेदादि को भूल गये होंगे, उनको तुम्हारा पुत्र पुनः याद दिलाने वाला होगा । वेद के छः अंगों का जानकार होगा । षष्टितंत्र शास्त्र ( कापिलीय शास्त्र ) का जानकार होगा सांख्य-शास्त्र में, गणित - शास्त्र में, आचार-ग्रन्थों में, शिक्षा के उच्चारणशास्त्र में, व्याकरणशास्त्र में, ज्योतिष शास्त्र में, अन्य ब्राह्मरण - शास्त्रों में तथा परिव्राजक - शास्त्रों में (नीतिशास्त्र, आचारशास्त्र में ) वह पंडित होगा ।
अवधि ज्ञान से जब इन्द्र को भगवान् के अवतरण की बात ज्ञात हुई, तो उसे विचार हुआ कि तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, शूद्र, अधम, तुच्छ, अल्प ( अल्प कुटुम्ब वाले ), निर्धन, कृपण, भिक्षुक या ब्राह्मएा कुल में नहीं; वरन् राजन्य - कुल में, ज्ञातवंश में, क्षत्रियवंश में, इक्ष्वाकुवंश में और हरिवंश में होते हैं । अतः इन्द्र ने हिरणेगमेसी' को गर्भपरिवर्तन करने की आज्ञा दी ।
१- देखिये पृष्ठ ११२
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