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देवानन्दा के गर्भ में
भगवान महावीर ब्राह्मणकुंड नामक ग्राम में कोडालगोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की जालंधरगोत्रीया पत्नी देवानन्दा की कुक्षि में उत्तराफाल्गुनी । नक्षत्र को चन्द्रयोग प्राप्त होने पर गर्भ-रूप में अवतरित हुए। जिस समय भगवान् गर्भ में आये, वे तीन ज्ञान से युक्त थे ।
जिस रात्रि को श्रमए भगवान् महावीर जालंधरगोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में गर्भ में आये, उस रात्रि के चौथे प्रहर में (पश्चिमयाम) जब देवानंदा न गहरी निद्रा में थी और न पूरे रूप में जग रही थी, उसने चौदह महास्वप्न देखे। चौदह स्वप्नों को देख कर देवानन्दा को बड़ा संतोष हुआ। जगने के बाद, देवानन्दा ने उन स्वप्नों को स्मरण रखने की. चेष्टा की और अपने पति ऋषभदत्त के पास गयी। उसने अपने स्वप्नों की बात ऋषभदत्त से कही। स्वप्नों को सुनकर ऋषभदत्त बोला
"हे देवानुप्रिये ! तुमने उदार स्वप्न देखे हैं-कल्याणरूप, शिवरूप, धन्य, मंगलमय और शोभायुक्त स्वप्नों को तुमने देखा है। ये स्वप्न आरोग्यदायक, कल्याणकर और मंगलकर है। तुम्हारे स्वप्नों का विशेष फल इस प्रकार है।
"हे देवानुप्रिये ! अर्थ- लक्ष्मी-का लाभ होगा। भोग का, पुत्र का और सुख का लाभ होगा। ९ मास ७॥ दिवस-रात्रि बीतने पर तुम पुत्र को जन्म दोगी। ___ “यह पुत्र हाथ-पाँव से सुकुमार होगा। वह पाँच इन्द्रियों और शरीर से (हीन नहीं वरन् ) सम्पूर्ण होगा। अच्छे लक्षणों वाला होगा । अच्छे व्यंजन वाला होगा । अच्छे गुणों वाला होगा। मान में, वजन में तथा प्रमारण में वह पूर्ण होगा। गठीले अंगों वाला तथा सर्वांग सुन्दर अंगोंवाला होगा। चन्द्रमा के समान सौम्य होगा। उसका स्वरूप ऐसा होगा, जो सब को प्रिय लगे।
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