________________
(२)
गर्भापहार श्वेताम्बर-ग्रन्थोंमें गर्भापहार की जो चर्चा मिलती है, वह आश्चर्यजनक अवश्य लगती है; पर ऐसा नहीं है कि, श्वेताम्बर-शास्त्र उसके आश्चर्य-रूपसे अपरिचित हों। जैन-शास्त्रों में १० आश्चर्यो' के उल्लेख मिलते हैं। उनमें 'एक आश्चर्य गर्भापहरण भी है। इस सम्बन्ध में मत-निर्धारण करने में जो • लोग जल्दीबाजी करते हैं, उनकी मूल भूल यह है कि वे 'आश्चर्य' और 'असम्भव' इन दो शब्दों के अन्तर को भली भाँति नहीं समझ पाते। इन दोनों शब्दों के भावों में बड़ा अन्तर है। जैन-शास्त्र इसे 'आश्चर्य' कहते हैं, 'असम्भव' नहीं।
इस गर्भापहरण का उल्लेख न केवल टीकाओं और चूणियों में है वरन् मूल सूत्रों में भी मिलता है। १-दस अच्छेरगा पं० तं-उवसग्ग १, गब्महरणं २, इत्थीतित्थं ३, अभाविया परिसा, ४ कण्हस्स अवरकका ५, उत्तरणं चंदसूराणं ॥१॥ हरिवंसकुलुप्पत्ती ७ चमरुप्पपातो त ८ अट्ठसयसिद्धा है। अस्संजतेसु पूआ १० दसवि अएं तेण कालेण ॥
-स्थानाङ्ग भाग २, सूत्र ७७७ पत्र ५२३-२ । : -१ उपसर्ग, २ गर्भापहरण, ३ स्त्रीतीर्थ, ४ अभव्य परिषद-अयोग्य परिषद, ५ कृष्ण का अपरकंका-गमन, ६ चन्द्र सूर्य का आकाश से उतरना, ७ हरिवंशकुल की उत्पत्ति, ८ चमरेन्द्र का उत्पात, ६ १०८ सिद्ध, १० असंयत पूजा।
-स्थानाङ्ग समवायाङ्ग, मालवरिणयाकृत अनुवाद पृष्ठ ८६१ आश्चर्यों का उल्लेख कल्पसूत्र-सुबोधिका-टीका (व्याख्यान २, पत्र ६४) तथा प्रवचन सारोद्धार सटीक (उत्तर भाग, पत्र २५६-१) में भी इसी रूप में है। उसकी टीका में 'अच्छेर' (आश्चर्य) का अर्थ करते हुए टीकाकार ने लिखा है "आ-विस्मयतश्चर्यन्ते-अवगम्यन्ते जैनरित्याश्चर्यारिण-अद्भुतानि"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org