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________________ (४६) २-ये २५॥ आर्यदेश सर्वदा के हैं । (२) समय-समय पर इनमें परिवर्तन होते रहते हैं । जैन-ग्रंथों में ही १६ जनपदों की भी चर्चा मिलती है: १. अंगाणं, २. वंगाणं, ३. मगहाणं, ४. मलयाणं ५. मालवगाणं ६. अच्छाणं, ७. वच्छाणं, ८. कोच्छाणं, ९. पाढाणं, १०. लाढाणं, ११. वज्जाणं, १२. मोलीणं, १३. कासीणं, १४. कोसलाणं, १५. अवाहाणं, १७. संभुत्तराणं । (२) १ अंग, २ वंग, ३ मगध, ४ मलय, ५ मालव, ६ अच्छ, ७ वच्छ, ८ कोच्छ, ६ पाढ, १० लाढ-राढ, ११ वज्ज (वज्जी), १२ मोलि (मल्ल), १३ काशी, १४ कोशल, १५ अवाह, १६ सुम्भोत्तर (सम्होत्तर)। पर, इनमें 'महाजनपद' शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। ३-महावीर स्वामी के समय में 'आर्यक्षेत्र' की मर्यादा इस रूप में थी१-प्रज्ञापना-सूत्र-मलयगिरि कृत टीका पत्र ५५-२। सूत्रकृतांग सटीक, प्रथम भाग, पत्र १२२ । प्रवचन-सारोद्धार सटीक, पत्र ४४६ (१-२) आदि । २-भगवती-सूत्र सटीक, १५-वाँ शतक, सूत्र ५५४ (पृष्ठ २७) । (पृष्ठ ४५ की पादटिप्पणि का शेषांष ) महाभारत (सभापर्व) में भीम के दिग्विजय के प्रकरण में (अध्याय ३१ श्लोक ३) पूर्व में 'मल्ल' देश की अवस्थिति बतायी गयी है। वहाँ भी ‘मल्ल' शब्द अकेला आया है, 'मल्लवर्तक' के रूप में नहीं। ___'बृहत् कल्पसूत्र' (भाग ३, पृष्ठ ६१३) में जहाँ २५॥ आर्य देश गिनाये गये हैं, वहाँ 'वर्त' नाम पृथक देश के रूप में आया है। 'कल्पसूत्र' ("सेक्रेड बुक्स आव द' ईस्ट", खण्ड २२, पृष्ठ २६०) में इसी ‘मासपुरी' से 'मासपुरिका' शाखा का प्रारम्भ बताया गया है। डाक्टर याकोबी ने इस 'मासपुरिका' शब्द को अशुद्ध रूप में 'मासपूरिका' लिखा है। वस्तुतः शब्द का शुद्धरूप 'मासपुरिका' होना चाहिए। 'प्रवचन-सारोद्धार' की टीका में (पत्र ४४६-२) आया है- 'मासपुरी नगरी वर्तो देशः ।' यहाँ 'वर्त' देश के रूप में आया है। इसका 'मल्ल' से कोई सम्बन्ध नहीं है। - 'भगवती-सूत्र' (१५-वाँ शतक):में जहाँ जनपदों से नाम गिनाये गये हैं, वहाँ भी 'मन्न' नाम अकेला आया है, 'मल्लवर्तक' के रूप में नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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