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(४५) २३. वर्त (')
मासपुरी २४. कुणाल
श्रावस्ती २५. लाढ
कोटिवर्ष २५॥. केकय
श्वेतविका इसी मध्यखंड के आर्य देशों में ही तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, और बलदेव आदि उत्तम पुरुष उत्पन्न होते हैं। (लोकप्रकाश, सर्ग १६, श्लोक ४५)
१-'पार्श्वनाथ-चरितम्' (श्री हेमविजय गणि-विरचित, पृष्ठ ६० ) में इसे (वृत्ता मासपुरी...) 'वृत्त' रूप में लिखा है। मूल प्रकृतरूप 'वट्ट' का संस्कृत में 'वृत्त' और 'वर्त' दोनों रूप बनते हैं। सम्भवतः इसी कारण लेखक ने 'वृत्त' शब्द का प्रयोग किया है। ___ 'काव्य-मीमांसा' (गायकवाड़-ओरियण्टल-सीरीज, तृतीयावृत्ति, अध्याय १७, पृष्ठ ६३, पंक्ति २१) में 'वर्तक' शब्द आया है। उसके सम्पादकों ने (पृष्ठ XLI) मल्लवर्तक को एक देश के रूप में माना है और परिशिष्ट १ (पृष्ठ ३०२) में इस प्रदेश की अवस्थिति मल्लपर्वत अथवा पार्श्वनाथ पहाड़ी के आसपास बताया है। विहार-राष्ट्रभाषा-परिषद द्वारा प्रकाशित काव्यमीमांसा में अनुवादक केदारनाथ शर्मा सारस्वत ने परिशिष्ट २, पृष्ठ २६३ में "मल्लवर्तक' को अंग्रेजी के अनुरूप एक साथ लिख डाला है । ऐसा ही भ्रामक प्रयोग 'त्रिषष्टि-शलाका-पुरुष-चरित्र' [पत्र ३७-१, पर्व ४, सर्ग २, श्लोक ६६] में भी हुआ है। ___ 'काव्यानुशासनम्' (महावीर-जैन-विद्यालय बम्बई द्वारा प्रकशित) में (प्रथम खण्ड, १८२) सभी देशों के नाम एक साथ मिलाकर लिख दिये गये हैं। अनुक्रमणिका (पृष्ठ ५५५) में 'वर्तक' शब्द लिख कर प्रश्नचिह्न देकर शंका प्रकट की गयी है और पृष्ठ ५५१ पर 'मल्लवर्तक' एक साथ दिया है।
'मल्लवर्तक' वस्तुत: एक ही देश का नाम नहीं है और ऐसा भी कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है, जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि, मल्लपर्वत का उस देश से कोई सम्बन्ध था।
'मल्ल' और 'वर्तक' दोनों को एक साथ मिलाना वस्तुतः जैन तथा वैदिक ग्रंथों के विरुद्ध है।
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