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~~१.८६]
वाद
तथा साधनदूषणानुपयोगिनां प्रतिभाक्षयकारिणां कलह-गालिप्रदान सहभाषण-वृथाप्रहसन-कपोलवादन-तलप्रहार-शिर कम्पन- ऊरुताडन नर्तन-उत्पवन-आस्फोटनादीनामपि निग्रहस्थानत्वम् ॥ [८५, छलादिप्रयोगनियमः ]
स्वयं नैव प्रयोक्तव्याः सभामध्ये छलादयः । परोक्तास्तु निराकार्या वादिना ते प्रयत्नतः ।। १७ ॥ यदा सदुत्तरं नैव प्रतिभासेत वादिनः । प्राप्ते पराजये नित्यं प्रयोक्तव्याश्छलादयः ॥ १८ ॥ छलाधुभावने शक्तः प्रतिवादी भवेद् यदि ।
वादी पराजितस्तेन नो चेत् साम्यं तयोर्भवेत् ।। १९ ॥ ६.८६. वादः]
उक्तानि साधनदूषणानि । तैः क्रियमाणो वाद उच्यते ।
आदि की गलती भी निग्रहस्थान होती है, सुखपूर्वक वाद करनेवाले अन्य वादी के लिए वह निग्रहस्थान नहीं होती। इसी प्रकार पक्ष के साधन या दूषण के लिए अनुपयोगी एवं प्रतिभा को कम करनेवाले झगडे, गाली देना, साथ बोलना, फालतू हंसना, गाल बजाना,ताली बजाना,सिर हिलाना, छाती पीटना, नाचना, उडना, चिल्लाना आदि को भी निग्रहस्थान समझना चाहिए। छल आदि के प्रयोग के नियम
सभा में स्वयं छल आदि का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए किन्तु प्रतिवादी द्वारा उन का प्रयोग किये जाने पर वादी को प्रयत्नपूर्वक उन का निराकरण करना चाहिए । जब वादीको सही उत्तर सूझता ही न हो तथा पराजय का प्रसंग आया हो तब हमेशा छल आदि का प्रयोग करना चाहिए। यदि प्रतिवादी छल आदि को स्पष्ट बतला सके तो उस के द्वारा वादी पराजित होता है, अन्यथा दोनों में समानता रहती है।
अब तक साधन और दृषणों का वर्णन किया। अब उन से किये
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