________________
७२
प्रमाप्रमेयम्
[१.८४
नाम निग्रहस्थानम् । साधन प्रयोगे दूषणापरिज्ञानं दूषणोद्भावने परिहाराप्रतिपत्तिः अप्रतिभा नाम निग्रहस्थानम् । व्यासंगाद् भीतेः अप्रतिभादेः वा प्रारब्धकथाविच्छेदो विक्षेपो नाम निग्रहस्थानम् । स्वपक्षोक्तदोषमपरिहृत्य परपक्षे दोषमुद्भावयतो मतानुज्ञा नाम निग्रहस्थानम् । प्राप्तदोषानुद्भावनं पर्यनुयोज्योपेक्षणं नाम निग्रहस्थानम् । दोषरहितस्य दोषोद्भावनं निरनुयोज्यानुयोगो नाम निग्रहस्थानम् । स्वीकृतागमविरुद्धप्रसाधनम् अपसिद्धान्तो नाम निग्रहस्थानम् । असिद्धादयो हेत्वाभासा नाम निग्रह - स्थानानि ॥
[ ८४. निग्रहस्थानोपसंहारः ]
लिङ्गकारककालादिस्खलनं निग्रहो भवेत् । तत्प्रतिज्ञाभ्युपेतस्य नान्यस्य सुखवादिनः ॥ १६ ॥
निग्रहस्थान होता है, किन्तु ( प्रतिवादी के कथन का खंडन करनेके लिए ) दुहराना यह निग्रहस्थान नहीं होता । जिसे सभा ने समझ लिया हो तथा चादीने तीनबार जिस का उच्चारण किया हो उसे न दुहरा सकना यह अननुभाषण नामका निग्रहस्थान होता है । ( प्रतिपक्षी द्वारा ) किसी साधन ( हेतु ) का प्रयोग किये जाने पर उस में दूषण न सूझना तथा ( प्रतिपक्षी द्वारा ) दूषण दिये जाने पर उस का उत्तर न सूझना यह अप्रतिभा नामका निग्रहस्थान होता है । ( अन्य विषय में ) रुचि होने से, ( पराजय के ) डर से या उत्तर न सूझने से शुरू की हुई चर्चा को रोक देना यह विक्षेत्र नाम का निग्रहस्थान होता है । अपने पक्ष में बताये गये दोष का उत्तर न देकर प्रतिपक्ष में दोष बताना यह मतानुज्ञा नाम का निग्रहस्थान होता है । ( प्रतिपक्ष में ) प्राप्त हुए दोष को न बतलाना यह पर्यनुयोज्योपेक्षण नाम का निग्रहस्थान होता है । निर्दोष कथन में दोष बतलाना यह निरनुयोज्यानुयोग नाम का निग्रहस्थान होता है । अपने द्वारा मान्य आगम के विरुद्ध तत्त्व को सिद्ध करना यह अपसिद्धान्त नाम का निग्रहस्थान होता है । असिद्ध इत्यादि हेत्वाभास नाम के निग्रहस्थान हैं ( जिन का विस्तार से वर्णन पहले हो चुका है ) |
निग्रहस्थान चर्चा का समारोप
जिसने वैसी प्रतिज्ञा की हो उस वादी के लिए लिंग, कारक, काल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org