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________________ ६८ प्रमाप्रमेयम् [१.७५निग्रहस्थानम। अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद् घटवदित्युक्ते प्रध्वंसाभावेन हतोः अनेकान्तोद्भावने नाहं शब्दमनित्यं ब्रवीमीत्यादि । ७५. हेत्वन्तरम् ] __ अविशेषे हेतौ व्यभिचारेण प्रतिपिढे पश्चाद विशेषणोपादानं हेत्वतरं नाम निग्रहस्थानम् । उदाहरणम्-पूर्वप्रयोगे पूर्ववदनेकान्तोद्भावने पश्चाद् अनित्यः शब्दः भावत्वे सति कृतकत्वाद् घटवदित्यादि । ७६. अर्थान्तरम् ] प्रकृतप्रमेयानुपयोगिवचनम अर्थान्तरं नाम निग्रहस्थानम्। उदाहरणम् raamrawwwwwwwwwwmr. ऊतक है जैसे घट इस अनुमान के प्रस्तुत करने पर हेतु में प्रवंसाभाव से अनेकान्त बतलाया गया ( प्रध्वंसाभाव कृतक होने पर भी नित्य है अतः कृतकत्व यह हेतु नित्य और अनिय दोनों पदार्थों में पाया जाता है-वह अनैकान्तिक है ऐसा कहा गया) तब मैं शब्द को अनित्य नही कहता ऐसा कहना ( प्रतिज्ञासंन्यास होगा, शब्द अनित्य है यह बादी की प्रतिज्ञा थी उस से वह मुकरता है यही प्रतिज्ञासंन्यास है)। इत्वन्तर निग्रहस्थान विशेषणरहित हेतु का प्रयोग करने पर (प्रतिवादी द्वारा ) व्यभिचारसोष दिग्वलाने पर (हेतु में ) विशषण का स्वीकार करना यह हेत्वन्तर जाम का निग्रहस्थान है । जैसे-उपर्युक्त अनुमान में (शब्द अनित्य है क्यों के वह कतक है जैसे घट) उपर्युक्त प्रकार से अनेकान्त - दोष बतलाने पर (अध्वंस भाव कृतक है किन्तु नित्य है अतः कृतकत्व यह हेतु नित्य और अनित्य होना पदार्थों में पाया जाता है अतः वह अनैकान्तिक है) यह. हना के शब्द अनित्य है क्यों कि वह भाव है तथा कृतक है जैसे घट (यहां मल हेतु कृतकत्व में भावत्व के साथ होना यह विशेषण अधिक जोडा । अतः यह हेत्वन्तर निग्रहस्थान हुआ )। अर्थान्ता निग्रहस्थान प्रस्तुत.विषय के लिए निरुपयोगी बातें कहना यह अर्थान्तर नाम का निग्रहस्थ न है जैसे- शब्द अनित्य हैं, क्यों कि वह कृतक है यह हेतु है, हेतु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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