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प्रमाप्रमेयम्
[१.६५माकाशादिकं सत्वात् घटवदित्यादिकं स्यादिति। अयमेव प्रतिकृलतर्क इति ज्ञातव्यः॥ [६५. पपत्तिसमा]
उभ यत्रैकहेतूपपल्या प्रत्यवस्थानम् उपपत्तिसमा जातिः। अनित्यः शब्दः पक्षस पक्षयोः अन्यतरत्वात् सपक्षवत् , नित्यः शब्दः पक्षसपक्षयोः अन्यतरस्यात् सपक्षवदिति । नित्या भूः गन्धवत्त्वात्, अनित्या भूः गन्धवत्त्वात् इत्यादि ॥ [६६. उपलब्ध्यनुपलब्धिसमे ]
सपक्षे हेतुरहितसाध्योपलब्ध्या प्रत्यवस्थानम् उपलब्धिसमा जातिः। अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद् घटवदित्युक्ते प्रागभावे कृतकत्वामान ) होने से आकाश आदि भी अनित्य सिद्ध होंगे । इसी को प्रतिकूलतर्क भी कहते हैं । ( यह जाति अर्थात झठा दृषण है क्यों कि इस में शब्द अनित्य है इस साध्य के बारे में कुछ न कह कर आकाश अनित्य सिद्ध होगा यह प्रस्तुत विषय से असंवद्ध बात उठाई गई है, यह स्पष्टतः विषयान्तर है)। उपपत्तिसमा जाति
__ दोनों पक्षों में एक ही हेतु की उपपत्ति बतला कर उत्तर देना यह उपपत्तिसमा जाति होती है । जैसे - शब्द अनित्य है क्यों कि वह पक्ष और सपक्ष में से किसी एक में विद्यमान है जैसे सपक्ष, शब्द नित्य है क्यों कि वह पक्ष और सपक्ष में से किसी एक में विद्यमान है जैसे सपक्ष । (दूसरा उदाहरण - ) पृथ्वी नित्य है क्यों कि वह गन्ध से युक्त है, पृथ्वी अनित्य है. क्यों कि वह गन्ध से युक्त है। उपलब्धिसमा तथा अनुपलब्धिसमा जातियां
सपक्ष में जहां साध्य पाया जाता है किन्तु हेतु नही पाया जाता ऐसा उदाहरण दे कर आक्षेप उपस्थित करना यह उपलब्धिसमा जाति होती है। जैसे-शब्द अनित्य है क्यों कि वह घट जैसा कृतक है इस अनुमान के उत्तर में कहना कि प्रागभाव कृतक नहीं है फिर भी उस में अनित्यता पाई जाती है अतः कृतक होना अनित्य होने का बोधक कैसे होगा ? ( यह वास्तविक
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