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नित्यानित्यसमा
भावेऽपि अनित्यत्वं दृश्यते, कथमेतद् गमकं स्यादिति ॥ अनुपलब्धरभावे साध्ये अनुपलब्धेरप्यनुपलम्भेन प्रत्यवस्थानम् अनुपलब्धिसमा जातिः। उदाहरणम् -- शब्द उच्चारणात् पूर्व नास्ति अनुपलब्धेः इत्युक्ते अनुपलब्धेरप्यनुपलम्भ एव इन्द्रियलिङ्गशब्दानामनुपलब्धिसम्बन्धरहितत्वेन तद्ग्रहणायोगादिति ॥ [६७. नित्यानित्यसमे]
पक्षस्यानित्यधर्मस्य नित्यत्वापादनेन प्रत्यवस्थानं नित्यसमा जातिः। अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद् घटवदित्युक्ते शब्दे अनित्यत्वं सर्व-..
दृषण नही है क्यों कि इस में व्याप्ति के सही रूप को न समझते हुए आक्षेप किया है । जो कृतक होते हैं वे अनित्य होते हैं ऐसी व्याप्ति इस अनुमान में है किन्तु आक्षेप करनेवाला कह रहा है कि जो अनित्य हैं वे सभी कृतक होने चाहिएं, यह ठीक नहीं है)। किसी वस्तु का अभाव सिद्ध करने के लिए अनुपलब्धि (न पाया जाना ) यह हेतु दिये जाने पर अनुपलब्धि की भी अनुपलब्धि है यह कह कर उत्तर देना अनुपलीध्वसमा जाति होती है । जैसे-उच्चारण के पहले शब्द नहीं है क्यों कि वह ज्ञात नहीं होता ऐसा कहने पर आक्षेप करना कि यहां शब्द ज्ञात नहीं होता यह बात भी ज्ञात नही हो सकती क्यों कि यह अनुल पब्धि इन्द्रियप्रत्यक्ष से अथवा अनुमान से अथवा शब्द से ( आगम से ) भी ज्ञात नही हो सकती-अनुलब्धि का इन्द्रिय प्रत्यक्ष आदि से सम्बन्ध ही नहीं होता ( यह जाति है - वास्तविक दृषण नहीं है क्यों कि इस में किसी वस्तु के अभाव का ज्ञान ही अस्वीकार किया गया है, वस्तु के अभाव का ज्ञान प्रत्यक्ष से ही होता है यह बात आक्षेपकर्ता भूल गया है । वस्तु के अभाव का अभाव है यह कहने का तात्पर्य होगा कि वस्तु का आस्तित्व है और यह बात प्रत्यक्ष से ही ज्ञात होती है)। निन्यसमा तथा अनित्यसमा जाति
पक्ष के अनित्य गुणधर्म को नित्य बतला कर उत्तर देना यह नित्यसमा जाति होती है। उदाहरणार्थ - शब्द अनित्य है क्यों कि वह कृतक है जैसे वट इस अनुमान के प्रस्तुत करने पर यह कहना कि शब्द में अनित्यत्व सर्वदा
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