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________________ प्रमाप्रमेयम् [१.३ सम्यक् ज्ञानमेव प्रमाणम् । प्रकर्षेण संशयविपर्यासानध्यवसायव्यवच्छेदेन मीयते निश्चीयते वस्तुतत्त्वं येन तत् प्रमाणमिति करणव्युत्पत्या सम्यक्ज्ञानसाधनं प्रमाणम् । तत् प्रत्यक्षं परोक्षमिति द्विविधम् ॥ [३. प्रत्यक्षप्रमाणभेदाः] तत्र पदार्थानां साक्षात् प्रतीत्यन्तराज्यवधानेन वेदनं प्रत्यक्षम् । तत्साधनं च । तच्च इन्द्रियप्रत्यक्षं मानसप्रत्यक्षं योगिप्रत्यक्षं स्वसंवेदनप्रत्यक्षमिति चतुर्धा ॥ [४. इन्द्रियप्रत्यक्षम् ] ___ आत्मावधानेनाव्यग्रमनसा सहकृतात् निर्दुष्टेन्द्रियात् जातम् इन्द्रियप्रत्यक्षम् । इन्द्रियं च स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रेन्द्रियमिति पञ्चविधम् । तत् प्रत्येकं द्रव्यभावभेदात् द्विविधम् । निर्वृत्त्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम्। तत्र निर्वृत्तिः नानाक्षुरप्रकुन्दकुड्मलमसूरयवनालीसंस्थाना। प्रमाण । प्रमिति ही प्रमाण है इस भाव-व्युत्पत्ति के अनुसार सम्यक् ज्ञान ही प्रमाण है। उत्तम रीतिसे अर्थात् संशय, विपर्यास तथा अनिश्चय को दूर कर के जो वस्तुतत्त्वका का निश्चय करता है वह प्रमाण है इस करण-व्युप्तत्ति के अनुसार सम्यक ज्ञान का साधन प्रमाण कहलाता है । प्रमाण के दो प्रकार हैं-प्रत्यक्ष तथा परोक्ष । प्रत्यक्ष प्रमाण के भेद साक्षात अर्थात दूसरे ज्ञान के व्यवधान के विना जो पदार्थों का जानना है वह प्रत्यक्ष प्रमाण है। उस जानने के साधन को भी प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं । उस के चार प्रकार हैं - इंद्रिय प्रत्यक्ष, मानस प्रत्यक्ष, योगिप्रत्यक्ष तथा स्वसंवेदन प्रत्यक्ष । इन्द्रिय प्रत्यक्ष आत्मा का अवधान होने पर तथा मन व्यग्र न हो उस समय - इन दोनों के सहकार्य से निर्दोष इंद्रिय से प्राप्त होनेवाला ज्ञान इंद्रिय-प्रत्यक्ष है । इंद्रिय पाना प्रकार के हैं - स्पर्शन, रसन, प्राण, चक्षु तथा श्रोत्र । इन में प्रत्येक के दो प्रकार हैं -- द्रव्य-इन्द्रिय तथा भाव-इन्द्रिय । द्रव्येन्द्रिय के दो भाग हैं . . निवृत्ति तथा उपकरण । इन में निवृत्ति ( इन्द्रिय का अन्तर्भाग) (स्पर्शनेन्द्रिय के लिए ) कई प्रकारको, (रसनेन्द्रिय के लिए) खुरपी के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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