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________________ [ सिद्धान्तसार- मोक्षशास्त्रस्य प्रथमः परिच्छेदः ] ॥ नमः सिद्धेभ्यः ॥ श्री- भाव सेन- त्रैविद्यदेव-विरचितं प्रमाप्रमेयम् [ १. मङ्गलाचरणम् ] श्रीवर्धमानं सुरराज पूज्यं साक्षात्कृताशेष पदार्थतत्त्वम् । सौख्याकरं मुक्तिपतिं प्रणम्य प्रमाप्रमेयं प्रकटं प्रवक्ष्ये ॥ १ ॥ बालव्युत्पत्यर्थ शास्त्रमिदं रच्यते मया स्पष्टम् । उदेशलक्षणादौ सोढव्यं विश्वविद्वद्भिः ॥ २ ॥ [ २. प्रमाणलक्षणम् ] अथ किं प्रमाणम् । पदार्थयाथात्म्यनिश्चयः प्रमाणम् । तच्च भावप्रमाणं करण प्रमाणमिति द्विविधम् । प्रमितिः प्रमाणमिति भावव्युत्पत्त्या [ अनुवाद ] देवों के राजा - इन्द्रों द्वारा पूजित, सुख के आकर के स्वामी, तथा समस्त पदार्थों के स्वरूप को जिन्हों ने है उन श्रीवर्धमान महावीर जिन को प्रणाम कर के मैं उन के विषयों का स्पष्ट वर्णन करूंगा || M Jain Education International अज्ञानी लोगों को ज्ञान कराने के लिए मैं इस शास्त्र की स्पष्ट रूप से रचना करता हूं | इस के उद्देशों-संज्ञाओं में तथा लक्षणों - व्याख्याओं आदि में (कोई त्रुटि हो तो उसे ) समस्त विद्वान सहन करें ( - क्षमा कर के सुधारें ) । श्रेष्ठ निधि, मुक्ति साक्षात् प्रत्यक्ष जाना प्रमाप्रमेय-प्रमाण तथा प्रमाण का लक्षण प्रमाण क्या है ? पदार्थ के वास्तविक स्वरूपके निश्चय को ( - यथार्थ ज्ञान को ) प्रमाण कहते हैं । उसके दो प्रकार हैं P भाव प्रमाण तथा करण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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