________________
९. उपसंहार--आचार्य भावसेन का यह दूसरा न्यायविषयक ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है । उन के पहले ग्रन्थ विश्वतत्त्वप्रकाश की तुलना में यह ग्रन्थ काफी छोटा है तथा प्रत्येक विषय की सांधक-बाधक चर्चा भी इस में उतने विस्तार से नहीं है । तथापि विचारों की स्वतन्त्रता की दृष्टि से इस का महत्त्व अधिक सिद्ध होगा। हमें आशा है कि आचार्य के शेष ग्रन्थों के प्रकाशन का प्रबन्ध भी निकट भविष्य में हो सकेगा। इस ग्रन्थ की प्रति की प्राप्ति के लिए हम श्रीदेवेन्द्रकीर्ति स्वामीजी, हुम्मच, श्री. पंडित भुजबलि शास्त्रीजी, मुडबिद्री तथा श्री. पद्मनाभ शर्मा, मैसूर के बहुत आभारी हैं । इस के प्रकाशन की स्वीकृति के लिए आदरणीय डॉ. उपाध्येजी तथा डॉ. हीरालालजी के प्रति भी हम कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
जावरा
दीपावली शक १८८६ )
विद्याधर जोहरापुरकर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org