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________________ ११५ -१.१२२] वाद और जल्प में भेद नहीं च तन्निदर्शनम्। वादे तदुक्तसाधनानां सद्भावात् साधनाव्यावृत्तो व्यतिरेकदृष्टान्तोऽपि । ततः कथं जल्पवितण्डयोर्विजिगीषुविषयत्वं न्यरूरुपस्त्वम् ॥ [१२२. बादजल्पयोः अभेदः ] किं च जल्पवितण्डे न विद्वद्गोष्ठीयोग्ये असत्साधनदूषणोपेतत्वात् कलहवत् । छलादयो वा न विद्वद्गोष्ठीयोग्याः असत्साधन दूषणत्वात् शापादिवत् । एतेन यदपि प्रत्यूचिरे योगाः-वादो न विजिगीषुविषयः तत्त्वज्ञानसंरक्षणरहितत्वात् चतुरङ्गरहितत्वात् लाभपूजाख्यातिकामैः अप्रवृत्तविषयत्वात् समत्सरैरकृतत्वात् प्रतिवादिस्खलितमात्रापर्यवसानत्वात् छलादिरहितत्वात् श्रीहर्षकथावत् , तथा वादः तत्त्वाध्यवसायसरक्षणरहितादिमान् चतुरङ्गरहितादित्वात् श्रीहर्षकथावत् इति पूर्वपूर्व और वितण्डा विजय के इच्छुकों द्वारा किये जाते हैं ( तथा वाद विजय के इच्छुकों द्वारा नही किया जाता - वीतरागों द्वारा किया जाता है) ऐसा निरूपण आपने किस प्रकार किया है (अर्थात ऐसा भेद करना प्रामाणिक नहीं है)। वाद और जल्प में भेद नहीं है (नैयायिकों द्वारा वर्णित ) जल्प और वितण्डा विद्वानों की चर्चा में प्रयुक्त होने योग्य नही हैं क्यों कि कलह के समान इन जल्प-वितण्डाओं में भी अनुचित साधन और दूषण प्रयुक्त होते हैं । छल आदि भी विद्वानों की चर्चा में प्रयुक्त होने योग्य नहीं हैं क्यों कि शाप आदि के समान ये छल आदि भी अनुचित साधन या दूषण हैं। अतः नैयायिकों ने जो यह उत्तर दिया था कि वाद विजय की इच्छासे नही किया जाता, क्यों कि वह तत्त्वज्ञान का संरक्षण नहीं करता, चार अंगों से संपन्न नहीं होता, लाभ, सत्कार या कीर्ति की इच्छा रखनेवालों द्वारा नही किया जाता, मत्सरी वादियों द्वारा नहीं किया जाता, प्रतिवादी की गलती होते ही समाप्त नही किया जाता, छल आदि से युक्त नहीं होता जैसे श्रीहर्ष की कथा (वाद); तथा वाद तत्त्वज्ञान के संरक्षण से रहित होता है क्यों कि वह चार अंगों से रहित होता है जैसे श्रीहर्ष की कथा (वाद) इस प्रकार जहां पहला कथन साध्य हो वहां बाद के कथन हेतु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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