SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्धांजलि Arrest जे महापुरुषे अनेक जन्मोथी सिद्धज्ञानगर्भित वैराग्यथी यौवनना प्रारम्भमां ज संसारना बंधनोने फगावी अपूर्वगुरुभक्ति, विनय, बहुमान आदि द्वारा रत्नत्रयीनी उज्ज्वल आराधना करी आजे जैनशासनमा अजोड गच्छाधिपतित्व प्राप्त कयु छे, जं शासनज्योतिर्धरनी परमपावनी निश्राने तथा करुणानिभृतदृष्टिने पामीने मारा जेवा अनेक आत्मानो संयमनी उत्तरोतर विशुद्धिने प्राप्त करवा समर्थ बन्या छ, ते सेंकडो मुमुक्षुजनोना मुक्तिमार्गमां भोमीया, विषयव्याधिथी पीडाता जीवात्माओना धन्वंतरी, भव-जंगल वटावी रहेला भव्योना सार्थवाह, अज्ञान-अंधकारमा अटवाताओना प्रकाशदाता, दर्शनमात्रथी कुवृत्तिओना प्रशामक, परमनिस्पृह, करुणाभृतहृदय, वात्सल्यवारिधि, सच्चारित्रचूडामणि, सिद्धान्तमहोदधि, कर्मशास्त्रनिष्णात, प्रातःस्मरणीय, परमाराध्यपाद, गच्छाधिपति. प्रगुरुमह, आचार्यभगवंत श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वर महाराजा ना पावन करकमलमां तेओश्रीना ज परम प्रभावथी रचायेल आ ग्रन्थरत्न अर्पण करीने यत्किंचित् कृतज्ञतानो आनंद अनुभवु छु. -सिद्धान्तमहोदधि आचार्यदेव श्रीमद्विजय प्रेमसूरीश्वर अन्तेवासी पंन्यासप्रवर भानुविजयगणिवर्य शिष्य ___ स्वर्गत पंन्यास पद्मविजयगणिवर शिष्याणु मुनि जगचन्द्र विजय www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy