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________________ विषय-परिचय [x मांना केटलाक अध्यवसायो अथवा ते बधाज अध्यवसायो ते चोक्कस स्थितिबन्धकरता समयाधिक स्थितिवन्ध करती वखते अथवा समयहीन स्थितिबन्ध करती वखते पण होई शके छे, अर्थात् एकस्थितिबन्धवखते सम्भवता रसबन्धना अध्यवसायो बीजा स्थितिबंधवखते पण होई शके तेरूप रसबन्धअध्यवसायनी अनुकृष्टि (एक स्थितिबन्धस्थानगत रसबन्धअध्यवसायोन बीजा स्थितिवन्धस्थानोमां अनुकर्षण खेंचावु एरूप) होय छे तेम स्थितिबन्धना अध्यवसायोनी अनुकृष्टि नथी होती, अर्थात् एक स्थितिवन्धने योग्य अध्यवसायोथी बीजी स्थिति बन्धाई शकती ज नथी, एम स्थितिवन्धना अध्यवसायोनी अनुकृष्टिनो निषेध करवामां आव्यो छे अने टीका ग्रन्थमां तेने वधारे स्पष्ट करवा असत्कल्पनाओनो अने असत्कल्पनानुसारी यन्त्रोनो आश्रय लेवामां आव्यो छे. त्यार बाद तीव्रतामन्दतानामक त्रीजा अान्तरद्वारमां-एक एक स्थितिवन्धने अनुरूप भिन्न भिन्न अध्यवसायोमां परस्पर, अने ते अध्यवसायोनी ते सिवायना बीजा स्थितिवन्धने माटे योग्य अध्यवसायोनी साथे उदितकायो यता रसनी अपेक्षाए तीव्रतामन्दता केवी अनन्तगुण होय छे ते व्यक्त करायु छे. बोजा मूठद्वार प्रकृतिसमुदाहारमां-दरेक मूळप्रकृतिने आश्रयी स्थितिबन्धना अध्यवसायो केटला होय छे ते तथा मूळप्रकृतिओने आश्रयी स्थितिवन्धना अध्यवसायस्थानोनु अल्पबहुत्व प्रदर्शित करायुछे. त्रीजा मूद्वार जीवसमुदाहारमां-जेनु प्ररूपण मुख्यपणे रसबन्धग्रन्थमां करवामां आवे छे तेवा बे, त्रण अने चार ठाणीआरसने बांधता भिन्न भिन्न अध्यवसायवाला जीवोन ते ते रस. बन्धक तरीके विभाजन करीने ते ते विभागगत जीवोने बन्धप्रायोग्य स्थितिओ अने स्थितिबन्धस्थानोनु प्रमाण बतावता पूर्वक ते ते स्थितिबन्धस्थानोने बांधनार जीवो अधिक अधिक स्थितिए कया क्रमथी अने क्यां सुधी वधती संख्यामां अने घटती संख्यामां होय छे अने ते जीवसमूहने ते ते स्थितिबन्धस्थान उपर स्थापतां केवी यवनी जेम चड-उतर आकारवाळी आकृतिओ बने छे, तथा ए यवाकृतिओना मध्यभागथी (सौथी वधारे जीवो होय तेवा पहोळा भागथी) बे बाजुए उत्तरता जता भागो उपर आवेलां स्थितिबन्धस्थानोमांथी केटलां केटलां अने कयां कयां स्थितिवन्धस्थानो मात्र साकारउपयोगमां वर्तता जीवोने ज बन्धप्रायोग्य होय छे, ते ज रीते केटलां अने कयां स्थानो साकार अने अनाकारमांथी कोईपण उपयोगमा वर्तता जीवोने बन्धप्रायोग्य होय छे. ए बतायवामां आव्युछे, अने त्यारवाद शुभ अशभ प्रकृतिओना बेत्रण अने चार ठाणीआ रसना बन्धकोने बन्धप्रायोग्यतरीके छ भागमा वाचायेला स्थितिबन्धस्थानो, वळी पाछां ते स्थितिबन्धस्थानो ते ते यवाकृतिना उपर-नीवेना ते ते भागमा रहेलां होवारूपे बेबे भागमां वहेंचाईने For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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