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________________ विषय-परिचय मार्गणास्थानोमां कहेला समस्त सत्पदोना एक-अनेक वन्धकोथी ते ते काळविशेषमा प्राप्त थता नानाजीवाश्रय भांगा केटला छे वगरेनी विचारणा त्रीजा अधिकारनी जेम सत्पदादि ते ते द्वारोमा कराई छे. अहींयां आठे मूळकर्मनो अवस्थानस्थितिबन्ध अने अवक्तव्यस्थितिवन्ध पण अधिकृत छे पण ते सर्वथा त्रीजा भूयस्कारअधिकारमा कहेवाई गयेला प्रस्थानस्थितिबन्ध अने अबक्तव्य स्थितिबन्ध जेवो छे. अने तेथी ते संबंधी प्ररूपणा अने आयुःकर्मनो अल्पतरस्थितिवन्ध केजे भूयस्कारअधिकारमा कहेवाई गयो छे ते मात्र असंख्यभागहानिलक्षण एकन हानिरूप होवाथी ते विषयक प्ररूपणा भूयस्कारअधिकारमा कहेवाई गयेला अवस्थानस्थितिबन्ध वगेरे ते ते स्थितिवन्धने भळावी दईने ग्रन्थलाघव करवामां आव्यु छे. मात्र छेल्ला अल्पबहुत्वद्वारमा विशेषता होवाथी ए न भळावतां त्यां अल्पबहुत्वोने कहेवामां आव्यां छे. टीकाग्रन्थमां ते ते पदार्थोने व्याप्तिओ वगेरे द्वारा सिद्ध कर्या छे अन अधिकारना अन्ते समग्रवृद्धि अधिकारमा आवेला पदार्थोनो संग्रह करतां यन्त्रो द्वारवार आलेख्यां छे. छट्टो 'अध्यवसायसमुदाहार' अधिकार अने एनां ३ द्वारो पांचमा अधिकार पछी छट्ठा अध्यवसायसमुदाहार नामना अधिकारमा पूर्वना पांच अधिकारमा बतावायेला कार्यरूप स्थितिबन्धना कारणभूत एवा कषाय उदयथी उत्पन्न थता आत्माना अध्यवसायोने आश्रयीने 'स्थितिसमुदाहार, प्रकृति समुदाहार, अने जीवसमुदाहार नामनां त्रण मूलद्वारो अने 'प्रगणना' 'अनुकृष्टि' वगेरे अवान्तरद्वारोथी निरूपण करवामां आव्यु छे. तेमां स्थितिसमुदाहार नामना पहेला द्वारमां-प्रगणना, अनुकृष्टि,अने तीव्रतामन्दता नामना त्रण अवान्तरद्वारो छे. तेमां प्रगणनाद्वारमां-ज्ञानावरणादिमूलकमेनो एक एक स्थितिविशेष (स्थितिबन्धस्थान)केटला भिन्न भिन्न अध्यवसायोथी बन्धाई शके ते, तथा स्थितिवन्धना कारणभूत ते अध्यवसायो दरेक स्थितिविशेषे सरखा (समान संख्यामां) नथी होता पण अधिक अधिक स्थितिवन्धमां वधारे वधारे होय छे ते बताव्यु छे. अने ते अधिक अधिक स्थितिबन्ध माटे समर्थ एवा अध्यवसायोनी पूर्वे कही गया तेम अनन्तरोपनिधा अने परम्परोपनिधा एम बे रीते प्ररूपणा करी छे. त्यार बाद अध्यवसायोनी द्विगुणवृद्धिनां स्थानो, अने निरन्तर अवां बे द्विगुणवृद्धिस्थानो बच्चेना स्थितिबन्धस्थानोर्नु अल्पबहुत्व बताव्यु छे के जेने टीकाग्रन्थमा युक्तिप्रयुक्ति अने असत्कल्पनाओपूर्वक अने पल्योपम-सागरोपमना भेदो, एर्नु स्वरूप, एनो उपयोग विगेरे प्रासंगिक विषयो सहित सविस्तर घटावधामां आव्युछे. अनुकृष्टिद्वारमां-जेम कोई चोक्कस स्थितिबन्धवखते संभवता रसबन्धना अध्यवसायो* भिन्न भिन्न कषायना उदयथी आत्मामा उत्पन्न यता भिन्न भिन्न परिणामो. . For Private & person Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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