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________________ विषय-परिचय [ ४१ (४) ज्ञानावरणादि ते ते प्रकृतिनो स्थितिबन्ध सर्वथा न थतो होय एवा जीवने ते स्थितिधन्ध शरू थतां पहेला समये ते ते प्रकृतिनो अवक्तव्य स्थितिबन्ध कहेवाय. आ चार प्रकारना स्थितिबन्धमां भूयस्कारवन्धना प्राथम्यना हिसाबे टूकामां अधिकारनु नाम 'भूयस्कार एवं छे. आ अधिकारमा 'सत्पद, स्वामित्व, काल, अन्तर, 'भङ्गविचय, भाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शना, १ काल, ११अन्तर, १२भाव अने १अल्पबहुत्व एम पूर्ववत् तेर द्वारोथी भूयस्कारादि स्थितिबन्धोनी सत्पद, स्वामित्वआदि प्ररूपणा करवामां आवी छे. पहेला सत्पद द्वारमां-पूर्ववत ओपथी अने आदेशथी (१७०) मार्गणास्थानोमां कया मूलकर्मनां भूयस्कारादि कयां स्थितिवन्धपदो सत् (सद्भत) छे. ते बतावी तेने टीकाग्रन्थमां सिद्ध करवामां आव्यां छे. जेमके-ओघथी आयुष सिवाय सात मुलकर्मनां भूयस्कारादि चारे प्रकारनां स्थितिबन्धपदो सत् छे, ज्यारे आयुष कर्मनां अवक्तव्य अने अल्पतर नामनां बे ज स्थितिबन्धपदो सत् छे, बाकीनां बे पदो असत् छे, केमके कोई पण जीवने पोताना जीवित दरमियान आयुष कर्म क्यारेक ज बन्धाय छे, तथास्थितिबन्ध प्रमाण कर्मरूपताअवस्थानलक्षण स्थितिबन्धना हिसाबे अधिकृत होवाथी आयुषकर्मनी बंधाती स्थितिना प्रमाणमां अबाधा अन्तर्गत गणेली छे अने तेम होवाथी आयुषबन्धकालना बीजात्रीजा वगेरे समयोमा अनुभवयोग्यस्थितिरन्ध प्रमाण पहेला समय जेटलुज रहेवा छतां भोगवाता आयुषनी शेषस्थितिने अधीन एवी अबाधा समये समये घटे छे तेथी आयुषवन्ध शरू थतां बीजा समयथी पूर्व पूर्व समय करतां उत्तर उत्तर समयोमा कर्मरूपताअवस्थानलक्षणस्थितिबन्धप्रमाण समय समय ओछु प्राप्त थतु होई पहेलो समय छोडी दरेक समयोमा अल्पतर स्थितिबन्धो ज मळे छे, अने पहेला समये अवक्तव्य स्थितिबन्ध ज मळे छे, पण आयुष्यनां भूयस्कार के अवस्थित स्थितिबन्ध ए बे पदो नहि मलतां होवाथी असत छे. मनुष्यगतिओघ वगेरे केटलीक मार्गणाओ छोडीने नरकगतिओघ, तेना उत्तरभेद, तिर्यचगतिओघ, तेना उत्तरभेद, देवगतिओघ, तेना उत्तरभेद एकेन्द्रियादि अने पृथ्वीकायादि ओघ. मार्गणाओ तथा तेना उत्तरभेदो वगेरे वगेरे घणी मार्गणाओमां सात कर्मनो अवक्तव्य स्थितिबन्ध पण असत् छे(मलतो नथी). जो के देवगतिओघ वगेरे केटलीक मार्गणाओमां उपशान्तमोह वगेरे गुणस्थानके मरण पामीने देवपणे उत्पन्न थता जीवने पूर्वसमये ज्ञानावरणादिनी स्थितिनो अबन्ध अने ते पछीना देवभवना प्रथम समये ते ते स्थितिनो बन्ध मलतो होई अवक्तव्यबन्ध सत् कही शकाय, पण अहींयां ते ते मार्गणाने अनुरूप देवत्वादि (देवपणु वगेरे) चोक्कस पर्यायमां वर्तता जीवने पूर्वोत्तरसमये थता अधिक-हीनादि स्थितिवन्धने लईने भूयस्कारादि स्थितिवन्धनी अने तेवाज चोक्कसपर्यायवर्ती जीवन प्राप्त थता ते ते कर्मनी स्थितिना अबन्ध-बन्धने लईने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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