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विषयपरिचय
अवक्तव्यबन्धनी विवक्षा करवामां आवी होई देवगतिओघादि मार्गणाओमां ज्ञानावरणादिकर्मनो अवक्तव्यस्थितिबन्ध सत् नथी गण्यो. आ वातने सत्पदादि पहेलां त्रण द्वारोनी टीकामां अवसरे अत्रसरे स्पष्ट करवामां आवी छे अने त्रीजा एकजीवाश्रय कालद्वारमां ५७५ मी गाथानी टीकामां तो ते गाथामां कहेला अर्थनी घटना ज चालु विवक्षा करतां जुदाप्रकारनी विवक्षाथी करीने ते ते विवक्षार्थी थता लाभालाभने दर्शाव्यो छे.
सत्पदद्वार पछी स्वामित्वादि शेषद्वारोमां- बीजा अधिकारनी जेम पहेला द्वारमां बतावेला ज्ञानावरणादि ते ते कर्मना भूयस्कारादि ते ते स्थितिबन्धसत्पदना स्वामीओ, ते पदोनो एकजीवाश्रय जघन्य उत्कृष्ट काळ, अन्तर, नानाजीवाश्रय भांगा, बन्धकभाग, बन्धकपरिमाण वगेरे बताव्युं छे. जेतु टीकाग्रन्थमां पूर्वनी जेम समर्थन करवामां आव्यु ं छे. अने ते ते द्वारोने अन्ते द्वामां आवेला पदार्थोंने टू कमां संग्रहकरतां यन्त्रोनुं आलेखन करवामां आत्युं छे.
चोथो 'पदनिक्षेप' नामनो अधिकार अने एनां ३ द्वारो
भूयस्कार अधिकार पछी चोथा 'पदनिक्षेप' अधिकारमां सत्पद, स्वामित्व अने अल्पबहुत्व नामनां त्रण द्वारो छे, जेमां 'उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि, उत्कृष्ट अवस्थान, * जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि, 'जघन्य अवस्थान रूप ६ प्रकारना स्थितिबन्धनो विचार करवामां आव्यो छे, आ६ प्रकारना स्थितिबन्धो भूयस्कारादिस्थितिबन्धोना विशेषरूप ज छे. ते आ प्रमाणे
(१) उत्कृष्ट वृद्धि पदः - ज्ञानावरणादि ते ते कर्मनो चोक्कस प्रकारनो भूयस्कार स्थितिबन्ध के जे भूयस्कारस्थितिबन्ध शेष भूयस्कारस्थितिबन्ध करतां अधिकतम ( वधारेमा वधारे) स्थितिsantaratit थतो होय ते उत्कृष्टवृद्धिपद कहेवाय.
(२) उत्कृष्ट हानि पद :- ज्ञानावरणादि ते ते कर्मनो चोक्कस प्रकारनो अल्पतर स्थितिबन्ध के जे अल्पतरस्थितिबन्ध शेष अल्पतरस्थितिबन्ध करतां अधिकतम स्थितिबन्धना घटवाथी थतो होय ते उत्कृष्टहानिपद कहेवाय.
(३) उत्कृष्ट अवस्थान पद :- अवस्थितस्थितिबन्धना पूर्वमां थयेला ते ते भूयस्कार के अल्पतर स्थितिबन्धोमां अधिकतमस्थितिबन्धतारतम्यथी थयेला भूयस्कार के अल्पतर स्थितिबन्धनी उत्तरमां थयेलो अवस्थितस्थितिबन्ध ते उत्कृष्ट अवस्थानपद कहेवाय, आ उत्कृष्ट अवस्थान स्थितिबन्ध कोई मार्गणाओमां उत्कृष्टवृद्धिपदना अनन्तरसमयोमां होय छे. तो वळी कोई मार्गणाओमां उत्कृष्ट हानिपदना अनन्तरसमयोमां होय छे, केमकं तेवी मार्गणाओमां उत्कृष्टवृद्धि पछी अवस्थान ज नथी हो, अथवा उत्कृष्टवृद्धिपद करतां उत्कृष्टहानिपद वधारे स्थितिबन्धतारतम्यथी मळतु होय छे. कोई कोई मार्गणाओमां तो उत्कृष्टवृद्धि के उत्कृष्टहानिना अनन्तर समयोमा उत्कृष्टअवस्थान न मळतां अन्य कोई भूयस्कार के अल्पतरना अनन्तरसमयोमां उत्कृष्ट अवस्थान मळे छे. (४) जघन्य वृद्धि पद, (५) जघन्य हानि पद अने (६) जघन्य अवस्थान पद:- उत्कृष्ट
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