SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ ] विषय-परिचय कामां सत्पदादि विविध द्वारोने आश्रयी सामान्यथी अने विशेषथी एम वे रीते प्रकृतिबन्ध स्थितिबन्ध वगेरे भेदपूर्वक कर्मबन्धनी विचारणा विस्तारथी करवामां आवी छ . 'बन्धविधान' एवं ' ग्रन्थनाम सार्थक छे : उक्त कर्मबन्धन प्रक्रियाने बन्धप्रक्रिया, बन्धविधान, बन्धविधि, बन्धनकरण एम समान अर्थक भिन्न भिन्न शब्दोथी पण उल्लेखी शकाय छ े। अने ए रीतेआ महाग्रन्थनु' 'बन्धविधान' एवं ' नाम सार्थक (अर्थानुसारी) छ. अथवा बन्धविधाननो अर्थ बन्धना भेदो एवो पण थई शके. अने आ ग्रन्थमां प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, रसबन्ध, प्रदेशबन्ध एम बन्धना अनेक भेदोनु' प्ररूपण आवतु होई आ बीजो अर्थ पण घटी शकवाथी प्रस्तुत ग्रन्थ' 'बन्धविधान' एवं नाम सार्थक कहेवानां कोई जवांधो नथी. बन्धना मुख्य चार भेदो : उक्त कर्मबन्ध कहो, बन्धातां कर्म कहो के बन्ध कहो पण ते वखते आत्मा साथे जोडाई रहेलां कार्मणवर्गणानां पुद्गलोमां ते बखतनी आत्मानी कषायादिपरिणतिने अनुसारे अनेकविध विशेषताओं उत्पन्न थाय छे जेमांनी चार मुख्यविशेषताओने आश्रयीने एकज काळे थयेलो ते बन्ध ते ते विशेषताने मुख्य करीने ४ प्रकारनो कहेवाय छ े. ते आ प्रमाणे (१) प्रकृतिबन्ध, (२) स्थितिबन्ध, (३) रसबन्ध, (४) प्रदेशबन्ध प्रकृतिबन्ध अने तेना भेद-प्रभेद : प्रकृति एटले स्वभाव, ते स्वभावनुं उत्पन्न थवु ते प्रकृतिबन्ध; जेम सूंठनो स्वभाव पित्त करवानो, गोळनो स्वभाव कफकरवानो, तेम अमुक चोकस समये योगने अनुसारे आत्मासाथै संबंधां आतां कार्मणवर्गणानां दलिकोसांथी (पुद्गलप्रदेशो मांथी) केटलांक दलिकोमा आत्माना ज्ञानगुणने आववानो स्वभाव उत्पन्न थाय छ. तो वळी ते सिवायनां बीजां केवलांक दलिकोमां आत्माना दर्शनगुणने आवरवानो स्वभाव उत्पन्न थाय छे, ते सिवायना बीजां कटलांक दलिकोमां सुख दुःख आपवानो स्वभाव उत्पन्न थाय छे. एम भिन्न भिन्न जे स्वभाव उत्पन्न थाय छ ेते अनुसारे प्रकृतिबन्धना पण अनेक भेद पड़े छे; जे मुख्यपणे आठ छ. ते आप्रमाणे (१) ज्ञानावरणीय प्रकृति, (२) दर्शनावरणीय प्रकृति, (३) वेदनीय प्रकृति, (४) मोहनीय प्रकृति, आ ८ प्रकारनी प्रकृति स्वभावमांथी ज्ञानावरणादि ते ते स्वभावने पामेलां एक एक जातनां Jain Education International (५) आयु प्रकृति, (६) नाम प्रकृति, (७) गोत्र प्रकृति, (८) अन्तराय प्रकृति. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy