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विषय- परिचय
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आत्मा साथै संबंध ते वैकियबन्ध कहेवाय छे. एज रीते आहारकवगेरे बन्धो तेत्रां तेवां आहारकवर्गणादि पुद्गलोनी विशेषताओने कारणे भिन्न भिन्न स्वरूपवाळा जाणवा, एमां कार्मणवर्गणाना लोनो आत्मासाथै संबन्ध एने कार्मणबन्ध कहेवाय छे तेम कर्मबन्ध पण कहेवाय छे. अनेकविध बन्धमां कर्मबन्ध मुख्य :
औदारिकादि अनेकविध बन्धो कर्मबन्धने आभारी छे. केमके आत्माना मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, योग अने सम्यक्त्वादि रूप शुभाशुभ भावोथी उत्पन्नथयेल कर्मबन्धनी विलक्षणताओ शेष औदारिकादि बन्धोना निर्माणमा हेतु छे. एटल ज मात्र नहि, अनन्तज्ञानदर्शनमय अनन्तसुखमय एवा आपणा प्यारा आत्मामां जडता, अल्पज्ञता, मोहमूढता वगेरे कर्मबन्धने कारणे छे. अने तेथी ज ज्ञानी महापुरुपए औदारिकादिवन्धने संसारनु कारण न कहेतां कर्मबन्धने संसारनु कारण कह्यु ं छे. आ कर्मबन्धने शास्त्रकारोए 'बन्ध' शब्दथी पण संबोध्यो छे.
कर्मबन्धना ज्ञाननी आवश्यकता :
यद्यपि कर्मबन्धनां कारणो मिध्यात्व, अज्ञान, असंयम, कषाय, दुर्ध्यान वगेरे छे, अने तेथी विषरीत एवां सम्यक्त्व, सम्यग्ज्ञान, संयम, शुभध्यान वगेरे कर्मबन्धनी अल्पता अनं कर्मबन्धना सर्वथा उच्छेदनां कारणो छे तो पण कर्मबन्धनी प्रक्रियानु ज्ञान कर्मबन्धरूप महारोगनी जडने अने भयंकरताने बतावत्रा द्वारा कर्मबन्धना कारणोथी आत्माने दूरने दूर राखवा, तथा कर्मबन्धनां उच्छेदक सम्यक्त्व संयमादिमां आदर करावनारुं छे. एटल ज नहि, कर्मबन्धनी प्रक्रियाने जाणवा माटेनो प्रयास (प्रवृत्ति) द्रव्यानुयोगनुं चिन्तन छे. के जे द्रव्यानुयोगना चिन्तनमां तल्लीन थयेला अनेक संयमी आत्माओ शुक्लध्यान अने क्षपकश्रेणि मांडी अनादिपरंपरावाळा कर्मोना फुरचा उडाडी अनन्त अव्यावाध आत्मिक सुखसंपत्ति ने प्राप्त करनारा बन्या छे. आ रीते कर्मबन्धना स्वरूप ज्ञान आत्महितसाधनानु एक महान अंग होई मुमुक्षुजनोने अति आवश्यक छे.
कर्मबन्धना ज्ञाननी प्राप्तिनु साधन कर्मसाहित्य अने तेमां बन्धविधान :
पूर्वकाळना ज्ञानी महर्षिओए भावी प्रजाना हितने अनुलक्षीने ज्ञानना अखूट खजाना दृष्टिवाद महाशास्त्रमांथी उद्धरी शतक, कर्मप्रकृति, कषायप्राभृत वगेरे कर्मविषयक अनेक प्रकरणशास्त्रो निर्माण तु. जेमांनां शतक कर्मप्रकृति वगेरे अतिप्राचीन शास्त्रो तथा त्वारबाद रचायेला ते ते ग्रन्थोनां महत्वपूर्ण विवरणो अने ते ग्रन्थोने आधारे रचायेला कर्मविपाकादि कर्मग्रन्थो वगेरे कर्मविषयक साहित्य आपणा पुण्य योगे आजे पण मोजूद छे. आ वधा शास्त्रोमां कर्मबन्धना प्रतिपादक बन्धनकरण वगेरे शब्दसंक्षिप्त अने अर्थगंभीर ग्रन्थांशो आवेला छे के जे ग्रन्थांशो अवलम्बीने 'बन्धविधान' ग्रन्थ उद्भव पाम्यो छे. आ बन्धविधानग्रन्थमां अनेक अधि
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