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विषय- परिचय
पृथ्वी पाणी वगेरेनां अने मनुष्य, पशु, पक्षी, कीडा वगेरेनां नजरे चढतां भौतिक शरीरो बने छे. औदारिकवर्गणानां पुद्गलो करतां विलक्षणकोटीनां पुद्गलस्कन्धोनो समूह के जेमांथी देव नारकोनां शरीरो वगेरे बने छे ते वैक्रियवर्गणा पुद्गलो कहेवाय छे. वैक्रियवर्गणानां पुङ्गलोनो
स्कन्धोनी होय छे. तेमांथी ग्रहीं उपयोगी प्रौदारिकथी कार्मणवर्गणा सुधीनी वर्गणात्र, अने तेमां आवता स्कन्धो नघन्यथी भने उत्कृष्टथी केटला परमाणुयोना बनेला होय छे ते नीचेना कोष्टकभी जाणी शकाशे.
वर्गणा नाम
जघन्यथी केटला परमाणु होय
उत्कृष्टथी केटला परमाणु होय ?
श्रदारिक अग्राह्य* वर्गणा
१ परमाणु
अभव्यथी अनंतगुण एवी सिद्धना अनंतमा भाग वाली संख्या जेटला.
श्रदारिक वर्गरगा ( ग्राह्य ) उपरनीवर्गणाना उत्कृष्ट + १परमाणु
+
क्रम
१
२
३
४
५
६
७
८
ह
१०
११
१२
१३
१४
१५
१६
वैक्रिय ग्राह्य वर्गणा
वैक्रिय वर्गणा ( ग्राह्य )
आहारक ग्राह्य वर्गरणा
श्राहारक वर्गणा ( ग्राह्य )
तेजस अग्राह्य वर्गणा
तेजस वर्गणा ( ग्राह्य )
भाषा अग्राह्य वर्गणा
भाषा वर्गणा ( ग्राह्य )
उच्छवास अग्राह्य वर्गणा उच्छ्वास वर्गणा ( ग्राह्य )
मन अग्राह्य वर्गा
मन वर्गणा ( ग्राह्य )
कारण ग्राह्य वर्गरणा
कार्मण वर्गणा ( ग्राह्य )
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स्वजघन्य - स्वजघन्यतो अनन्तमो भाग.
X अनन्तफ
+ स्वजघन्यनो अनन्तमो भाग
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X अनन्त.
+ स्वजघन्यतो अनंतमो भाग.
X अनन्त.
+ स्वजघन्यनो अनन्तमा भाग
+
१७ मी वगेरे वर्गणानां नाम श्रा प्रमाणे छे - ( १७ ) ध्रुवा चित्तवर्गरणा, (१८) ध्रुवा चित्तवर्गणा, (१९) प्रथम शुन्य वर्गगा, (२०) प्रत्येकशरीरवर्गणा, (२१) द्वितीय शून्य वर्गरणा, (२२) बादरनिगोद वर्गणा, (२३) तृतीय शून्यवर्गणा, (२४) सूक्ष्मनिगोदवणा, (२५) चतुर्थ शून्य वर्गरणा, (२६) प्रचित्तमहास्कन्ध | आ वर्गणाश्रोतु स्वरूप विशेषथी कर्मप्रकृति वगेरे ग्रन्थोथी जाणी लेवु. ग्रहीं 'विषय परिचय' मां श्रदारिक वगेरे वर्गणाने समजवा प्राटलं पर्याप्त छे.
X अनन्त.
+ स्वजघन्यो अनन्तमो भाग.
X अनन्त.
+ स्वजघन्यनो अनन्तमो भाग.
X अनन्त.
+ स्वजघन्यनो अनन्तमो भाग
X अनन्त.
+ स्वजघन्यनो ग्रनन्तमो भाग
* या १६ वर्गणामां बीजी, चोथी, छुट्टी वगेरे वर्गणाग्री के जे वर्गणाश्रोना स्कन्धोमांथी मनुष्य वगेरेनां दारिकशरीरी देव वगेरेनां वैक्रियशरीरो, पूर्वधरमुनिश्रोनां प्रसंगवशात् बनावातां श्राहारकशरीरो वगेरे बनतां होई ते वर्गणा श्रदारिकादिवर्गणायो ( श्रदारिकादि ग्राह्य वर्गणात्र ) कहेवाय छे. ज्यारे प्रौदारिकादि ते ते वर्गणाना पूर्व पूर्वनी पहेली, त्रीजी, पांचमी वगेरे वर्गणात्रोमा रहेला स्कन्धोमांथी श्रदारिकादि शरीर नहि बनी शकतां होवाथी ते पहेली श्रीजी वगेरे प्रौदारिक प्रग्राह्य, वैक्रियग्राह्य वगेरे नामवाली वर्गणाओ कहेवाय छे.
5 हयां गुणक प्रभव्यथी अनन्तगुण एवो सिद्धनो अनन्तमा भाग जेवडो छे. ए प्रमाणे नीचे पण ज्यां- 'प्रनंत' कह्युं छे त्यां गुणक तेटलो अभग्यथी अनन्तगुण अने सिद्धोना अनन्तमा भाग जेवडो समजवो ।
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