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________________ - सचराचर विश्वमां विद्यमान वस्तुमात्रनु पृथक्करण त्रण विभागमां थई शके, (१) प्रथम विभागमां मात्र जड वस्तुओ, जेवी के सूक्ष्म परमाणु, द्व्यणुक वगेरे 4 औदारिकादि पुद्गलवर्गणाओ, अचेतन काष्ठ वगेरे तथा धर्मास्तिकायादि आवे, (२) द्वितीय विभागमां केवळ चैतन्यमय अनन्ता सिद्धपरमात्माओ आवे, अनें (३) तृतीय विभाग के जेमां जड (पुद्गलो) अने चेतन (आत्मा) ए बनेना दूध-पाणी जेवा या लोह अग्नि जेवा बन्धी (संबंधथी) उत्पन्न थयेलां सचेतन पृथ्वी, पाणी, अग्नि, पवन, वनस्पति यावत् स्वेच्छया गमनागमनादि चेष्टा करता दृष्टिगोचर थता मनुष्य, पशु, पक्षी, कीडा आदि आवे. विषय- परिचय अनादि काळथी जीवन भिन्न-भिन्न अनिष्ट स्थितिओमां (अवस्थाओमां) गमन अने मनगमती अवस्थाओमां अस्थैर्य ( नहि टकवापणु ) ए रूप संसारपरिभ्रमण जड-चेतनना दूधपाणी जेवा बंधथी उत्पन्न थयेला वीजा विभागमा लागु पड़े छे. अने तेथी ज संसार परिभ्रमण अटकावी शुद्धचैतन्यस्वरूप मोक्ष मेळववामां कारणभूत सर्वज्ञशास्त्रनां कहेल तच्चोनां श्रवणचिन्तन-मनन अने विधि-निषेधनां अनुष्ठान वगेरे आ त्रीजा विभागने उद्देशीने छे. बन्धना अनेक प्रकार :-- जनो चेतन सानो ते बंध = संबंध जड - पुद्गलोनी तेत्री तेवी विशेषताओने कारणे अनेक प्रकारनो मान्यो छे. जेमके- (१) औदारिकवन्ध, (२) वैक्रियबन्ध, (३) आहारकबन्ध, (४) तैजसबन्ध अने (५) कार्मणबन्ध के कर्मबन्ध. औदारिकवन्ध एटले जड एवा पुगलसमूहमा रहेला चोकसप्रकारना बीजा जडपुद्गलस्कन्धो करतां विलक्षण औदारिकवर्गणा नामना पुगलो सानो आत्मानो संबंध. आ पुलोमाथी Jain Education International ^ विश्वमां रहेलां प्रचेतन द्रव्योमां रूप रस गंध अने स्पर्शवालां प्रत्येक द्रव्योने पुद्गल द्रव्यो कहेवाय छे. श्रा पुद्गलद्रव्यो एक परमाणु, बे परमाणु, रण परमाणु, चार परमाणु एम उत्तरोत्तर एकक परमाणु वधतां यावत् केटलांक असंख्यातपरमाणु श्रीनां बनेला भने केटलांक अनन्तपरमाणु ओनां बनेलां होय छे. आमां परमाणु श्री एटले जेना बे विभाग पण न थई शके तेवां श्रविभाज्य पुद्गलद्रव्यो छे, ज्यारे ने त्ररण वगेरे परमाणु प्रोथी बनेलां द्वय एक घरक वगेरे पुद्गलद्रव्यो विभाज्य पुद्गलद्रव्यो छे. आ परमाणु सिवायनां द्वयक यक वगेरे अनन्तारक सुधीनां दरेक द्रव्योने स्कन्ध कहेवाय छे. आ स्कन्धोमांथी अमुक चोक्कस संख्यानां परमाणु यो वाला स्कन्धोने प्रौदारिकवर्गणा वगेरे वर्गणात्र कहेवाय छे, आ वर्गरणा शास्त्रोमा २६ प्रकारती कही छे. ते उत्तरोत्तर अधिक अधिक परमाणुयोवाला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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