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________________ (ii) अकेन्द्रियादिमार्गणामां सातकर्मनाअनुत्कृष्टस्थितिबंधनो काळ अंतर्मुहूर्त ज आवे अ पदार्थ ना समर्थनमां ते अकेन्द्रियादिमार्गणामां भवचरमान्तर्मुहूर्तमांजीवनना छेल्ला अन्तमुहर्तमां)उत्कृष्टस्थितिने बांधतो जीव त्यांथी मृत्यु पामीने पाछो अकेन्द्रियमा ज उत्पन्न थाय,अज रीते बीजी मार्गणाओमां पण तेवीअवस्थामां मरतो जीव चोक्कस स्थानोमां ज उत्पन्न थाय. आ हकीकतना समर्थनमा 'भवचरमअन्तर्मुहूर्तमा सर्वाधिक संक्लेशवाळा जीवोनु मरीने पोताने योग्य सर्वकनिष्ठस्थानमां ज जवानु थाय छे' इत्यादि नियम बतावीने मे नियमनी अनेकरीते घटना करी छ, अहीं वाचकोने पदार्थाविवेचननी मार्मिक सूक्ष्मता देखाया विना नहि रहे. (iii) छट्टा अधिकारमां स्थितिबंधना अध्यवसायोना द्विगुणवृद्धिस्थानो अने तेवा बे द्विगुणवृद्धिना स्थानो बच्चेना अक अंतरमा रहेला स्थितिबंधस्थानोना अल्पबहुत्वमां द्विगुणवृद्धिनां स्थानो अंगुलना वर्गमूलना छेदनकोना असंख्यातमा भाग जेटला होय छतां अक आंतराना स्थानो करता ओछां कह्यां अबावतमा पूर्वपक्षथी विरोध उठावी अनु समाधान कईक अधिक अर्धराजलोक जेटली लांबी सूचिश्रेणिना छेदनको पण अढी उद्धारसागरोपमना समयोथी थोडांक ज अधिक थाय छ एवात दष्टांतो अने बीजा हेतुओथी सिद्धकरवाद्वारा कयु छ अने ते प्रसंगे जरुरी पल्योपम सागरोपमभेदोना स्वरूप अने प्रयोजन वगेरे पण वताव्या छे. जुओ प० ४२८-४३४. ___ (iv) 'कर्मप्रकृतिसंग्रहणी'नी अनुभागबंधनी चूर्णिमां अनुकृष्टिनु विधान करवा द्वारा उपरनी अधिक अधिक स्थितिना बंध वखते प्राप्तथतां रसबंधना अध्यवसायोने नीचेनी न्यून न्यून स्थितिना बंध वखते बताज्या होई केटलांक नीचेनां स्थितिबंधस्थानोमां चार ठाणीयानी जेम त्रण ठाणीया अने बे ठाणीया रसबन्धना अध्यवसायो पण प्राप्त थाय छ , ज्यारे अहीं स्थितिबंधग्रन्थमां ते ते स्थितिबंधस्थानो मात्र चार ठाणीया के व्रण ठाणीया विगरे अक अंक प्रकारना रसबन्धना अध्यवसायवाळा जीवोने ज बताव्या छ,अम बंने ग्रन्थानी वातोमा पूर्वपक्षथी विरोध बतावी समाधानमा युक्तिपूर्वक बंने ग्रन्थनी वातनो समन्वय करी बताव्यो छे. जुओ- पृ० ६४४-६४९. महत्त्वना परिशिष्टो: (१) प्रथम परिशिष्टमां 'स्थितिबंध' नी टीकामां जे जे शास्त्रग्रन्थोनी साक्षीओ मकवामां आवी छे ते ग्रंथोनु तथा साक्षीपाठोनी संख्यान लीस्ट छ. (२) बीजा परिशिष्टमां जेसलमेरना ज्ञानभंडारनो समर्थशास्त्रकार आचार्य भगवान मुनिचंद्रसूरीश्वरजी महाराज विरचित कर्मप्रकृतिचूर्णिना टोप्पणनो अंक उपयोगी अंश आपवामां आव्यो छ, तेमां साकार अनाकार उपयोगनी विचारणा अंक जुदीज शैलीथी करवामां आवी छ तेथी अध्ययनकर्ताओने ते उपयोगी थशे. आ टीप्पण ग्रंथ हजी मुद्रित थयो नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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