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________________ १६] भव्यजीवोने चिंतन-मननादि द्वारा कर्मनिर्जरामाटे लाभदायी निवडे अने आत्मकल्याणर्नु अक अंग बने आ शुभमनोरथने सक्रियरूप आपवा वि० सं० २००४ ना खंभातना चातुर्मासमां तेओश्रीओ 'बंधनकरण' उपर लखवानु शरू कयु पण विशाल साधुसमुदाय,संघ अने शासननी अनेक शुभप्रवृत्तिओमां से लेखनकार्यने वेग आपी शकायो नहि. आ शुभकार्यमा शिष्योनो साथ : पोताना समग्र जीवनने सुविशुद्ध संयमना रंगे रंगी नाखनार आ चारित्रनिष्ठ महापुरुाने भोगविलासना आ झेरीयुगमां पण भव्यात्माओने कठोरसंयमना मार्गे, अध्यात्मज्ञानना राहे सफल प्रयाण करावधानी जाणे लब्धि न धरी होय ! तेओश्रीनी शांत-प्रशान्त विरागमुद्राना दर्शन, चारित्रप्रभाव अने सत्प्रेरणाथी सेंकडो भव्यात्माओ संयमना पंथे प्रयाण करी चूक्या हता. सं० २००५-२००६ मां मुबई अने पालीताणाखाते तेमज सं०२००७२००८-२००९-२०१०-२०११-२०१२ नी सालमां मुंबई वगेरे क्षेत्रोमां संख्याध युवको तेमज कुटुबोना, कुटुबो पूज्य आचार्यभगवंतनी ज्वलंत वैराग्यप्रेरणाथी अने पूज्य प्रभावकप्रवचनकार गुरुदेव पं० श्रीभानुविजयजी गणिवर्यनी वैराग्यरसतरबोळ धर्मदेशनाना श्रवणथी मुक्तिमार्गना पथिक बन्या. ते सर्वने दीक्षादान पछी ग्रहणशिक्षा अने आसेवनशिक्षा आपवानु महत्चनु कार्य पूज्य आचार्यभगवंते तथा तेओश्रीना शिष्यप्रशिष्यरत्नो पू० पं० श्री हेमंतविजयजी गणिवर्य, पू० पं० श्री भानुविजयजो गणिवर्य तथा पू० पं० श्रीपद्मविजयजी गणिवरे उपाडी लीधु.आदर्शसाधुओ तैयार करवानी पूज्य आवार्यभगवंतनी इच्छाना तेओ रजे रज पारखनारा हता. पूज्यश्रीनी छत्रछायामां त्रणे पंन्यासप्रवरोओ साधुओने ग्रहण-आसेवनशिक्षा आपवान कार्य खूब खंतथी कयु. तेओओ आपेली उपदेशमाळा-पुष्पमाळा, यतिदिनचर्या, यतिशिक्षा, धर्मरत्नप्रकरण, श्री महानिशीथसूत्र प्रथम बे अध्ययन, आचारांगमूत्र, नंदीसूत्र, आवश्यकसूत्र, पाक्षिकमूत्रटीका वगेरेनी वाचनाओओ अपूर्व चेतना जगावी, तेनोज सुंदर प्रभाव छे के आजे आ मुनिवरो संयम, त्याग, तप, समितिगुप्तिना पालननी चीवट, आदर्श गुरुभक्ति, स्वाध्यायरतता आंतरमुखता, आज्ञापालकतादिगुणोथी शोभी रया छे. संसारथी पराङमुख बनेला आ विरागी मुनिओ संयमसाधना अने श्रतोपासनामां सुलीन बनी गया. थोडो अभ्यासक्रम आगळ वध्या पछी पू० आचार्यभगवंतनी इच्छा मुनिओने न्यायदर्शन नु अध्ययन करायानीथई त्यारे पू० गुरुदेव पंन्यासप्रवरश्री भानुविजयजो महाराजे पूज्य आचार्यभगवंतने विनंति करी के न्यापना अध्ययन माटे तो हुबेठो छु. आप कृपालु कहेशो त्यारे करावीश, हमणां आप कर्मसाहित्यनो अभ्यास करावो तो मुनिओने आफ्नो आ खास विषय संगीन रीते मळी जाय. पूज्यपाद आचार्यदेवने ते ठीक लाग्यु तेथी पूज्य गुरुदेवे मुनिओने अंक अठवाडीयु जैनशासनना आत्मा, कर्म, कर्मबंधना हेतुओ, गुणस्थानक, बंध, उदयादि उपर प्रकाश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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