SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जुओ-कर्मप्रकृतिनो शास्त्रपाठ - “करणोदयसंताणं सामित्तोघेहिं सेसगं णेयं । गइआइमग्गणासु संभवओ सुट्टु आगमिय ॥ ५३ ॥ " अर्थ-आठकरण तेमज उदय अने सत्ता स्वामित्व ओघथी कह्यु. बाकीनु ं बधु ं गत्यादिमार्गणाओमां ज्यां जे रीते घटे ते रीते पूर्वापर विचार करी जाणी लेवु. गत्यादिमार्गणा रोमां विचारयामाटे आज उपलब्ध कर्मसाहित्य आपणने भरपूरसामग्री पूरी पाडे छे. अ रीते कर्मविज्ञान विषयनो विचार थाय तो सामान्यरीते मर्यादित लागतो अ विषय अतिशय विस्तृत प्रतीत थाय छे. [ १५ अ कर्मसाहित्योद्धारक महाविभूतिः -- परमपूज्य संघकौशल्याधार सिद्धांतमहोदधि सुविशालगच्छाधिपति आचार्यभगवंत श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वर जो महाराजा जेम ओक विशुद्धसंयमना पालक महासंयमी छे, बहुश्रुत महान - ज्ञानी पुण्य पुरुष छे. अनेक आबालवृद्ध, शासनप्रभावक, विद्वान, संयमी अने उग्रतपस्वी शिष्यरत्नोने तैयार करनार तेमज वर्तमानकाले शासननी ओक प्रौढविभूति छे, तेम सूक्ष्मातिसूक्ष्म अने गहन वा कर्मसाहित्यना मर्मज्ञ अद्वितीय महापुरुष छे. तेओओ वर्षो सुधी सखतत्याग साथे कर्म - शास्त्रोना वाचन-मनन- परिशीलन पछी अना अंतस्थ महारसने चाख्यो छे. श्री ठाणांगसूत्रादि शास्त्रग्रंथोमां धर्मध्यानना चारपाया (प्रकार) मां विपाकविचयने अक पायो (प्रकार) को छे. द्रव्य-क्षेत्र -काल- मात्र अने भवनु निमित्तपामी कर्मो केवी रीते वंधाय छे. कर्माना शुभान के विचित्र फलो मले छे तेनो उंडो विचार आ ध्यानमां समाय छे. पूजनीय आचार्य भगवंते वर्षोसुधी दिवस रातो आवा ध्यान-चिंतन पाछल पसार करी छे अने अक पात्र आत्मरमणता अने पापोनी मंदता अनुभवी छे. नागिन कर्मशास्त्रोनी मर्मज्ञतानु जैनशासननी परंपरामां अक विशिष्ट गौरव मनायुं छ. सकलसंवमां मान्य कर्म साहित्यना महान निष्णात तरीकेनो सुप्रसिद्धि तेजश्रीने वले. ते ओश्रीए कर्मशास्त्रोना चिंतन-मननना परिपाकरूपे कर्मसिद्धि, संक्रमकरण भा. १-२, मार्गणाद्वारविवरण नगरे मोलिकग्रंथोनी अनेक शास्त्रोना नवनीतरूपे सुबोधशैलीमां रचना करी. तेम छतां तेओश्रीने संतोष न हतो. तेओश्रीनु अंतर झंखतु' हतु' के 'वर्तमानमां उपलध कर्मसाहित्य, आगमग्रंथो अने प्रकरणग्रंथांना आधारे सत्पदादिद्वारोमां तेमज गत्यादिमार्गणाद्वारोमां विस्तृत सरळ अने सुबोध शैलीमां कर्मशास्त्रोनु नवसर्जन थाय, केटलाक विषम लगता पदार्थों चिंतन मननने अंते सुगम अने निर्णीत थाय तो जैनशासनना कर्मविज्ञाननो मौलिकता, विस्तार जगतने जोवा, जाणवा मले. सेंकडो वर्षोसुधी ग्रंथारूढ नहि थयेलो परंपरागत आ वारसो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001852
Book TitleThiaibandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages762
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy