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दायमें जहाँतक मुझे स्मरण है सबसे पहले स्व. बाबू सूरजभानजीने नाटक समयसार देवबन्दसे प्रकाशित किया था। उसके बाद फलटणसे स्व० नाना रामचन्द्र नागने और उसके बाद अनेक प्रकाशकोंने। भाषाटीका सहित भी दो स्थानोंसे प्रकाशित हो चुका है। . ३ बनारसीविलास-पूर्वोक्त दो अन्योंके सिवाय बनारसीदास की जितनी
भी छोटी मोटी रचनाएँ हैं वे सब इस ग्रन्यमें दीवान जगजीवनने संग्रह कर दी हैं और इस संग्रहका नाम बनारसीपिलाम रस्ता है। ऐयागरेके ही रहनेवाले थे
और बनारसीदासजीके अवसानके कुछ ही समय बाद चैत्र सुदी २ वि० सं०१७०१ को उन्होंने यह संग्रह किया था। जिन रचनाओंका उल्लेख बनारसीदासजीने अपनी आत्मकथा ( अर्धकथानक) में किया है वे सभी इसमें हैं, बल्कि उनके सिवाय 'कर्मप्रकृतिविधान' नामकी अंतिम रचना भी है जो फागुन सुदी ७ सं० १७०० को समाप्त हुई थी, अर्थात् कर्मप्रकृतिविधानके केवल २५ दिन बाद ही बनारसीविलास संग्रहीत हो गया था । बहुत संभव है कि इसी बीच कविवरका देहान्त हो गया और उसके बाद ही उनकी स्मृति-रक्षाका यह
आवश्यक कार्य पूरा किया गया। ___ बनारसीविलासमें जो रचनाएँ संग्रहीत हैं उनमेंसे ज्ञानबापनी ( १६८६), जिनसहस्रनाम ( १६९०), सूक्तमुक्तावली ( १६९१ ) और कर्मप्रकृतिविधान (१७००) इन चार रचनाओं में ही रचनाकाल दिया है, शेषमें नहीं । परन्तु अधयानते नीचे लिको रचनाओंके संबंधमें मालूम होता है कि
मा किन समय रची गई था। लिखी है, जो बद्रोदास म्यूजियम कलकत्ता है। दूसरी प्रतिको ऋषि जिनदत्तने सं० १८६९ में नजीबाबादमें लिखी । यह प्रति अन बंगाल रायल एशियाटिक सोसाइटी (नं०६८४५) में सुरक्षित है। तीसरी प्रति भी उक्त सोसायटी (६७०१ ) में हैं जो साह मेघराजजीपठनार्थ लिखी गई थी। संवत् नही है। चौथी सटीक प्रति रूपचन्दके प्रशिष्य गबसारमुनिकी संवत् १८३९ की लिखी हुई है। • ३-६० बुद्धिलाल श्रावककी टीकासहित बैनग्रन्थरत्नाकर बम्बई द्वारा प्रकाशित और रूपचन्दकृत टीकासहित ब्र० नन्दलालबी द्वारा भिण्डसे प्रकाशित ।
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