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कहतां हितकारी असार कहतां अहितकारी। सो हितकारी सुखु जानिज्यो, अहितकारी दुखु जानिज्यौ । जातहि अजीवपदार्थ पुद्गलधधमाकाशकालकहु अरु संसारी जीवकहु सुवु नाही, ज्ञानु भी नाही, अरु तिहिको स्वरूप जानता जाननहारा जीवकहु भी सुखु नाही, ज्ञानु भी नाहीं । तिहिते इनको सारपनो घटै नहीं। शुद्धजीवकहु सुखु छै ज्ञानु भी छै । तिहिकै जानतां अनुभवतां जाननहाराको सुखु छै ज्ञान भी छै । तिहितै शुद्ध जीवको सारपनौ घटै छै । पद्यानुवाद--सोभित निज अनुभूतिजुत, चिदानंद भगवान ।
सार पदारथ आतमा, सकल पदा रथ-जान । कलश- अनन्तधर्मगस्तत्त्वं पश्यन्ती प्रत्यगात्मनः।।
अनेकान्तमयी मूर्तिनित्यमेव प्रकाशताम् ।। २ । बा० टी०-नित्यमेव प्रकाशतां - नित्य कहतां सदा त्रिकाल, प्रकाशतां कहतां प्रकाशक हुं, करहु, इतना कहतां नमस्कार कियौ। सो कौन, अनेकान्तमयीमूर्ति । न एकांतः अनेकान्तः, अनेकान्त कहतां स्याद्वाद, तिहिमयी कहतां सोई छै, मूर्ति कहतां स्वरूप जिहिको, इसी छै सर्वज्ञकी वाणी कहतां दिव्यध्वनि । एनै अवसर आशंका उपजै छै। कोई जानिसे, अनेकान्त तो संशय छै, संशय मिथ्या छै। तिहि प्रति इतौ समाधान कीजै । अनेकान्त तो संशयको दूरीकरणशील छै अरु वस्तुस्वरूपकहं साधनशील छै । तिहिको ब्यौरी-जो कोई सत्तास्वरूप वस्तु छै, सो द्रव्य गुणात्मक छ, तिहि माहै जो सत्ता अभेदपने द्रव्यरूप कहिजै छै सोई सत्ता भेदपनेकरि गुणरूप कहिजै छै। इहिको नाउ अनेकान्त कहिजै । वस्तुस्वरूप अनादिनिधन इसौ ही छै। काहूको सारौ नहीं। तिहिते अनेकान्त प्रमाण छै। आगे जिहि वाणीकहु नमस्कार कियौ सौ वाणी किसी छै प्रत्यगात्मनस्तत्त्वं पश्यंती-प्रत्यगात्मा कहतां सर्वज्ञ वीतराग, तिहिको व्यौरी, प्रत्यग भिन्न कहतां द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म तहि रहित छै आत्मा जीव द्रव्य जिहिको सो कहिले प्रत्यगात्मा, तिहिको तत्व कहिलै स्वरूप, ताकहुं पश्यंती अनुभवनशील छै । भावार्थ -- इस्यौ जो कोई वितर्क करिसै दिव्यध्वनि तौ पुद्गलात्मक छै अचेतन छै, अचेतननै नमस्कारु निषिद्ध छै। तीहे प्रति समाधान करिवाकै निमित्त यो अर्थ कह्या, जो सर्वज्ञस्वरूप. अनुसारिणी छै । इसौ मानिवा पाङ्ग भी बनै नहीं। ताकौ व्यौरी-वाणी जो
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