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________________ तरहके कुछ कलश, राजमल्लजीकी बालबोधिनी टीका और समयसारके पद्य पाठकोंके सामने उपस्थित कर रहे हैं। बालबोधिनी टीकाकी भाषा कैसी थी, सो भी इससे मालूम हो जायगा और यह भी कि उसका कितना सहारा लिया गया हैकलश-नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते। चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावान्तरच्छिदे ॥१॥ बा० बो०-स्वभावाय नमः । भावशन्दै कहिजै पदार्थ, पदार्थ संज्ञा छ। सत्त्वस्वरूप कहु तिहितै यौ अर्थ ठहरायौ जु कोई सास्वती वस्तुरूप तीहै म्हांको नमस्कारु । सो वस्तुरूप किसौ छै चित्स्वभावाय चित् कहिजै चेतना सोई छै स्वभावाय कहतां स्वभावसर्वस्व जिहिकी तिहिकौं म्हाको नमस्कारु । इहि विशेषण कहतां दोइ समाधान हौहि छै। एक तौ भाव कहतां पदार्थ, ते पदार्थ केई चेतन छै केई अचेतन छै । तिहि माहै चेतनपदार्थ नमस्कारु करिवा जोग्य छै इसौ अथु उपजै छै । दूजो समाधान इसौ जु यद्यपि वस्तुको गुण वस्तु ही माहै गर्भित छ । वस्तु गुण एक ही सत्व छै । तथापि भेदु उपजाइ कहिवा ही जोग्य छै । विशेषण कहिवा पापै वस्तुको ज्ञानु उपजे नाही । पुनः किं विशिष्टाय भावाय, और किसौ छै भाउ, समयसाराय । यद्यपि समय शब्दका बहुत अर्थ छै तथापि एनै अक्सर समय शब्दै सामान्यपनै जीवादि सकल पदार्थ जानिबा। तिहि माहै जु कोई सार छ, सार कहतां उपादेय छै जीव वस्तु तिहिको म्हाको नमस्कार । इहि विशेषणको यो भावार्थ सारनौ जानि चेतन पदार्थ है नमस्कारु प्रमाण राख्यौ; असार पदार्थ जानि अचेतन पदार्थको नमस्कारु निषेध्यौ। आगै कोई वितर्क करिसी जु सब ही पदार्थ आफ्ना आफ्ना गुणपर्याय विराजमान छै, स्वाधीन छै, कोई किहीकै बाधीन नहीं, जीव पदार्थको मार पनौ क्यो घटै छै । तिहिको समाधान करिवाकहु दोइ विशेषता कहा । पुनः किं विशिष्टाय मानाय, और किसौ छै भार, स्वानुसूया चकापते सर्वमानान्तरच्छिदे। एनै अवसर स्वानुभूति कहतां निराकुलल्ल लक्षण शुद्धामपरिणामस्वरूप अतीन्द्रिय सुखु जानिबौ, तिहिरूप चकासते कहता अवस्था है तिहिकी इसौ छै । सर्वभावान्तरच्छिदे, सर्वभाव कहतां अतीत अनागत वर्तमान पर्यायसहित अनंत गुण विराजमान जात जीवादिपदार्थ लिहिको अंतर छेदी एक समय माहे जुगपत् प्रत्यक्षपनी जाननशील जु को? शुद्ध जीव वस्तु तिहिको म्हांको नमस्कार । शुद्ध जीवबाहु सारपनौ घटै छै । मार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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