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________________ 'वह मंदिर यह कलश कहावै '--समयसार मन्दिर है और यह उसका कलश है। आत्मख्यातिटीकामें समयसारको शान्तरसका नाटक कहा है और उसमें जीव अजीवके स्वांग दिखलाए हैं और इसीलिए बनारसीदासने इसका नाम 'नाटक समयसार ' रखा है। कलशोंपर भट्टारक शुभचन्द्र (१६ वीं शताब्दि) की एक 'परमाध्यात्मतरंगिणी' नामकी संस्कृत टीका भी है। पाण्डे राजमल्लजीने कलशोंकी एक बालबोधिनी भाषाटीका भी लिखी थी, जो बनारसीदासजीको प्राप्त हुई थी। उनके आगरानिवासी पाँच मित्रोंने कहा कि नाटकसमसार हितजीका, सुगमरूप राजमलटीका । कवितबद्ध रचना जो होई, भाषा ग्रंथ पढ़े सब कोई ।। ३४ और तब बनारसीदासजीने इस ग्रन्थकी रचना की। इसमें ३१० दोहा-सोरठा, २४५ इकसीसा कवित्त, ८६ चौपाई, ३७ तेईसा सवैया, २० छप्पय. १८ घनाक्षरी, ७ अडिल्ल और ४ कुंडलिया, इस तरह सब मिलाकर ७२७ पद्य हैं, जब कि मूल कलशा २७७ हैं। क्योंकि इसमें मूल ग्रन्थके अभिप्रायोंको खूब स्वतन्त्रतासे एक तरहकी मौलिकता लाकर लिखा है, इसलिए स्काभाविक है कि पद्यपरिमाण बढ़ जाय । इसके सिवाय अन्तके चौदहवें गुणस्थान अधिकारको स्वतन्त्र रूपसे लिखा है जिसमें ११३ पद्य हैं। फिर अन्तमें उपसंहाररूप ४० पद्य और हैं। प्रारम्भमें भी उत्थानिका रूप ५० पद्य हैं। इस तरह कुन्दकुन्दके प्राकृत समयपाहुड़, अमृतचन्द्रके समयसारकलश और राजमल्लजीकी बालबोध भाषाटीकाके आधारसे इस छन्दोबद्ध नाटकसमयसारकी रचना हुई है और इस दृष्टिसे यह कोई स्वतंत्र ग्रन्थ नहीं है फिर भी एक मौलिक ग्रन्थ जैसा मालूम होता है। कहीं भी क्लिष्टता, भावदीनता और परमुखापेक्षा नहीं दिखलाई देती।। अर्थात् बनारसीदासजीने समयसारके कलशोंका अनुवाद ही नहीं किया है, उसके मर्मको अपने ढंगसे इस तरह व्यक्त किया है कि वह बिल्कुल स्वतंत्र जैसा मालूम होता है और यह कार्य वही लेखक कर सकता है जिसने उसके मूलभावको अच्छी तरह हृदयंगम करके अपना बना लिया है । हम नीचे इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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