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________________ अवश्य ही इनमेंके नाममाला और अनेकार्थकोश धनंजयके ही होंगे। क्यों कि उसकी दलोकसंख्या दो सौ बतलाई है, जो वास्तवमें धनंजय नाममालाकी श्लोकसंख्या है। आगे संवत् १६७१ में जौनपुर के नवाब किलीच खाँके बड़े बेटेको उन्होंने नाममाला और श्रुतबोध पढ़ाया था । इससे भी मालूम होता है कि वे धनंजयनाममालासे अच्छी तरह परिचित थे। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि यह नाममाला धनंजय नाममालाका अनुवाद है। हमने दोनोंको मिलान करके देखा तो मालूम हुआ कि इसमें न संकृत नाममाला तथा अनेकार्थ नाममालाका शन्दक्रम है, और न संस्कृतके सभी शब्द लिये हैं । बल्कि जैसा कि उन्होंने कहा है, इसमें शब्दसिन्धुका मन्थन करके और प्रचलित शब्दोंका अर्थ-विचार करके भाषा, प्राकृत और संस्कृत तीनों के शब्द लिये हैं । २ नाटक समयसार-आचार्य कुन्दकुन्दके प्राकृत ग्रंथ समयसारपाहुड़. पर 'आत्मख्याति' नामकी विशद टीका है जिसके कर्ता अमृतचन्द्र हैं। इस टीकाके अन्तर्गत मूल गाथाओंका भाव विशद करनेके लिए, उन्होंने जगह जगह स्वरचित संस्कृत पद्य दिये हैं जो 'कलश' कहलाते हैं। उनकी संख्या २७७ हैं और वे 'समयसारकलंशा' नामसे स्वतन्त्र ग्रन्थके रूपमें भी मिलते हैं। १-पंडित देवदत्तके पास । किछु विद्या तन करी अभ्यास । १६८ पढ़ी नाममाला से दोई । और अनेकारथ अवलोइ ॥ २- कबहुं नाममाला पढ़े, छंदकोस स्रुतबोध । कर कृपा नित एक-सी, कबहुं न होइ विरोध ॥ ४५५ अ.व. ३-यह 'नाममाला ' वीर सेवामन्दिर दिल्लीसे प्रकाशित हो चुकी है। ४-सबदसिंधु मंथान करि, प्रगट सु अर्थ बिचारि । भाषा करै बनारसी, निज गति मति अनुसारि ॥२ भाषा प्राकृत संसकृत, त्रिविध सुसबद समेत ।। 'जानि' 'बखानि ' 'सुजान' 'तह,' ए पदपूरन हेत ।। ३ ५-समयसार (कलश) के ९ अंक हैं और उनमें क्रमसे ४५, ५४, १३, १२, ८, ३०, १७, १३ और ८५, इस तरह सब मिलाकर २७७ संस्कृत पद्य है, जब कि बनारसीके नाटक समयसारमें ७२७ छ द । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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