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प्रवचनसारमें लिखा है कि पं० हेमराजजी ने संस्कृतटीकाको देखकर तत्वदीपिका नामकी अतिशय सुगम वचनिका लिखी और उसके आधारसे फिर मैंने ' किए कवित सुखधाम ।' इससे मालूम होता है कि जोधराज पं० हेमराजजीके ही समान अध्यातमी थे और इसलिए व्याख्यान में तर्क-वितर्क करने से उनका अपमान किया गया होगा |
इससे मालूम होता है कि जोधराज गोदीकाके समय में संवत् १७२० के आसपास ही यह घटना घटित हुई होगी । भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति बहुत करके आमेरकी गद्दी के ही भट्टारक होंगे । बखतरामका बतलाया हुआ समय १७७३ गलत जान पड़ता है ।
जोधराज गोदीका प्रवचनसारके अन्तमें एक सवैया दिया हुआ है, जो बहुत विचारणीय है
कोई देवी खेतपाल बीजासन मानत है, केई सती पित्र सीतलासौं कहै मेरा है । कोई कहे सावली, कबीरपद कोई गावै,
केई दादूपंथी होइ परै मोहघेरा है || कोई ख्वाजै पीर मानै, कोई पंथी नानकके,
केई कहैं महाबाहु महारुद्र चेरा है । याही बारा पंथमैं भरमि रह्यो सबै लोक,
कहे बोध अहो जिन तेरापंथ तेरा है |
ता टीकाकौं देखिकै हेमराज सुखधाम । करी वचनिका अति सुगम, तत्वदीपिका नाम ।
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देखि वचनिका हर सियौ, जोधराज कवि नाम ।
२ - पं० हेमराजजीके 'चौरासी बोल' की एक हस्तलिखित प्रति जयपुरके भंडार में है, जिसके अन्त में लिखा है - "लिखतं स्वामी बेणीदास अवरंगाबाद माहि सं० १७२३ पोस सुदी पंचमी... या पोथी साह जोधराज ... की छै मुकाम सांगानेर मध्ये | "
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३ -- आमेरके भट्टारकोंकी पट्टावलीसे नरेन्द्रकीर्तिका ठीक समय मालूम हो सकता है।
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