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________________ ५४ प्रवचनसारमें लिखा है कि पं० हेमराजजी ने संस्कृतटीकाको देखकर तत्वदीपिका नामकी अतिशय सुगम वचनिका लिखी और उसके आधारसे फिर मैंने ' किए कवित सुखधाम ।' इससे मालूम होता है कि जोधराज पं० हेमराजजीके ही समान अध्यातमी थे और इसलिए व्याख्यान में तर्क-वितर्क करने से उनका अपमान किया गया होगा | इससे मालूम होता है कि जोधराज गोदीकाके समय में संवत् १७२० के आसपास ही यह घटना घटित हुई होगी । भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति बहुत करके आमेरकी गद्दी के ही भट्टारक होंगे । बखतरामका बतलाया हुआ समय १७७३ गलत जान पड़ता है । जोधराज गोदीका प्रवचनसारके अन्तमें एक सवैया दिया हुआ है, जो बहुत विचारणीय है कोई देवी खेतपाल बीजासन मानत है, केई सती पित्र सीतलासौं कहै मेरा है । कोई कहे सावली, कबीरपद कोई गावै, केई दादूपंथी होइ परै मोहघेरा है || कोई ख्वाजै पीर मानै, कोई पंथी नानकके, केई कहैं महाबाहु महारुद्र चेरा है । याही बारा पंथमैं भरमि रह्यो सबै लोक, कहे बोध अहो जिन तेरापंथ तेरा है | ता टीकाकौं देखिकै हेमराज सुखधाम । करी वचनिका अति सुगम, तत्वदीपिका नाम । 9 देखि वचनिका हर सियौ, जोधराज कवि नाम । २ - पं० हेमराजजीके 'चौरासी बोल' की एक हस्तलिखित प्रति जयपुरके भंडार में है, जिसके अन्त में लिखा है - "लिखतं स्वामी बेणीदास अवरंगाबाद माहि सं० १७२३ पोस सुदी पंचमी... या पोथी साह जोधराज ... की छै मुकाम सांगानेर मध्ये | " Jain Education International ३ -- आमेरके भट्टारकोंकी पट्टावलीसे नरेन्द्रकीर्तिका ठीक समय मालूम हो सकता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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