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________________ ५३ मिथ्यात्वखंडन और तेरह पंथखंडनमें भी इस घटना का उल्लेख है । इतना अन्तर है कि उनमें तेरह पंथकी उत्पत्तिका समय १७०३ दिया है जब कि चन्दकविने १६७५ | यह अन्तर क्यों पड़ा ? हमारी समझमें ये सब लेखक बहुत पीछे हुए हैं और उक्त घटना इन सबसे पहले की है, जो परम्परासे सुन-सुनाकर लिखी गई है । पर चन्दका लिखा हुआ समय सत्यके अधिक नजदीक मालूम होता है, क्योंकि जिस अमर (भौसा) गोदीका पुत्रको मन्दिरमें से निकाल देनेकी बात लिखी है, उसका पूरा नाम जोधराज गोदीका है और उसके दो ग्रन्थ उपलब्ध हैं एक सम्यक्त्व - कौमुदी कथा और दूसरा प्रवचनसार भाषा । दोनों ही ग्रन्थ पद्यबद्ध हैं। पहला १७२४ का लिखा हुआ है और दूसरा १७२६ का । दोनोंमें ही जोधराजको सांगानेरका निवासी और अमरका पुत्र वतलाया है। सम्यक्त्वकौमुदीमें लिखा है - अमरपूत जिनवर भगत, जोधराज कवि नाम । बासी सांगानेरकौ, करी कथा सुखधाम ॥ संवत् संतरहसौ चौत्रीस, फागुन बदि तेरस सुभ दीस । सुकरबारको पूरन भई, इहै कथा समकित गुन ठई ॥ 66 इति श्री सम्यक्त्वकौमुदीकथायां साहजोधराजगोदीकाविरचितायां...” प्रवचनसार में कहा है " सत्रह छब्बीस सुभ, विक्रम साक प्रमान । अरु भादौं सुदि पंचमी, पूरन ग्रंथ बखान ॥ सुनय धरम ही सुखकरन, सब भूपनि सिर भूप । मानस जया सिंघसुत, रामसिंघ सुखरूप ॥ ताके राज सुचनस, कियौ ग्रंथ यह जोध । सांगानेर सुथान मैं, हिरदै धारि सुबोध ॥ इति श्री प्रवचनसार सिद्धान्ते जोधराजगोदीकाविरचिते...” १ चन्द कविने अमरा गोदीकाका पुत्र लिखा है, पुत्रका नाम नहीं दिया । पर बखतरामने अमरा भौसा ( पिता ) को ही सभासे निकाल देनेकी बात लिखी है । 'भौंसा' खंडेलवालोंका एक गोत है । २ - महावीरजी क्षेत्रकमेटी, जयपुरद्वारा प्रकाशित पृष्ठ २६१-२६२ । ' ३ – प्रशस्तिसंग्रह पृ० २३७-३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only ' प्रशस्ति-संग्रह, ८ www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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