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द्वारा बाजे बजवाना, राँधा हुआ अनाज चढ़ाना, थालोड़ी करना, मन्दिरमें जीमन करना, रात्रिको पूजन करना, रथयात्रा निकालना, मन्दिर में सोना, आदि । यह चिट्ठी फागुन सुदी १४ सं० १७४९ को लिखो गई बतलाई है
आई सांगानेर, पत्री कामांतें लिखी ।
फागुन चौदसि हेर, सत्रह से उनचास सुदि ॥ २६
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४- चम्पारामजी - बखतराम और पन्नालाल के सिवाय चम्पारामजी पांडेने अपने ग्रन्थ चर्चासागर में जो सं० १९९० में रचा गया है तेरहपंथका खंडन किया है। पं० शिवाजीलालने भी इसी समयके आसपास तेरह पंथ-खंडन नामका ग्रन्थ लिखा है | और भी कुछ ग्रन्थों के पढ़नेकी सिफारिश पं० पन्नालालजीने अपने तेरहपंथखंडन में की है - वसुनन्दि श्रावकाचार वचनिका, चर्चासार, पूजाप्रकरण, श्रावकाचार वचनिका, दर्शनसार वचनिका, चर्चा समाधान, कल्पनाकंदन, श्रावकक्रिया, बोधिसार, सुबुद्धिप्रकाश, सारसंग्रह । उक्त ग्रन्थ मिले नहीं, परन्तु उनमें भी इनसे अधिक कुछ होगा, ऐसा नहीं जान पड़ता ।
५-चन्दकवि - ' कवित्त तेरापंथकौ' नामकी छोटी-सी रचना एक गुटके में खी हुई मिली है जिसके कर्त्ता कोई चन्द नामक कवि हैं । उसमें लिखा है कि जब सांगानेरमें नरेन्द्रकीर्ति भट्टारकका चातुर्मास था तब उनके व्याख्यानके समय अमरा (मोना) गोदीकाका पुत्र, जो शास्त्र सिद्धान्त पढ़ा हुआ था, बीचबीचमें बहुत बोलता था, तब उसे व्याख्यानमेंसे जूते मारकर निकाल दिया । इससे चिढ़कर उसने तेरह बातोंका उत्थापन करके तेरहपंथ चलाया । यह घटना कार्तिकी अमावास्या सं० १६७५ की है ।
१ – संवत सोलासै पचोत्तरे, कार्तिकमास अमावस कारी ।
कीर्ति नरेन्द्र भटारक सोभित, चातुर्मास सांगावति धारी ॥ गोदीकारा उधरो अमरोत, सास्त्रसिघंत पढ़ाइयौ भारी । बीच ही बीच बखानमैं बोलत, मारि निकार दियौ दुख भारी ॥ १ तदि तेरह बात उथापि घरी, इह आदि अनादिकौ पंथ निवारयौ । हिंदुके मारे मतेच्छ ज्यौं रोवत, तैसै त्रयोदत रोज ( १ ) पुकारयौ ॥ २ पागरख्यां मारि जिनालयसै बिड़ारि दिए तातैं कुभाव धारि न माने गुरु जतीकौं । झूठो दंभ धरें फिरैं झूठ ही विवाद करें, छांड़े नांहि रीस जानदार कुगतीकौं ।
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