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'मिथ्यात्वखंडन' के आधारपर ही लिखा गया है और अपने मतकी पुष्टिके लिए उसके कुछ पद्योंको भी उद्धृत किया है। यह जयपुरी गद्यमें है। इसका प्रारंभ देखिए
" दिगंबरम्नाय है सो शुद्धम्नाय है। या विषै भी तेरहपंथीको अशुद्ध अम्नाय है सो याकी उत्पत्ति तथा श्रद्धा शान आचरण कैसे हैं ताका समाधान-पूर्वरीतिकू छोड़ि नई विपरीत आम्नाय चलाई तातें अशुद्ध है । पूर्वरीति तेरह थी तिनकौं उठा विपरीत चले, तातें तेरापंथी भये, तेरह पूर्व किसी, ताका समाधान
दस दिकपाल उथापि १, गुरूचरणां नहि लागै २ । केसरचरणां नहि धरै ३, पुष्पपूजा फुनि त्यागै ४ ॥ दीपक अर्चा छोड़ि ५, आसिका ६ माल न करही ७। जिन न्हावण ना करै ८, रात्रिपूजा परिहरही ९ ॥ जिनसासनदेव्यां तजी १०, रांध्यौ अंन चहोड़ें नहीं ११ । फल न चढ़ावे हरित फुनि १२, बैठिर पूजा करें नहीं १३ ।। ये तेरै उरधारि पंथ तेरै उरथप्पे।
जिन शास्त्र सूत्र सिद्धांतमांहि ला वचन उथप्पे । अर्थात् उक्त तेरह बातोंको छोड़ देनेसे यह तेरहपंथ कहलाया।"
कामांकी चिट्ठी-इसके आगे पद्धडी छन्दमें कामांसे सांगानेरकी लिखी हुई एक चिट्ठी दी है। कामांसे लिखनेवाले हैं--हरिकिसन, चिन्तामणि, देवीलाल
और जगन्नाथ और सांगानेरवालों के नाम हैं मुकुंददास, दयाचन्द, महासिंह, छ. कल्ला, सुन्दर और बिहारीलाल । सांगानेरवालोंसे आग्रह किया गया है कि हमने इतनी बातें छोड़ दी हैं, सो आप भी इन्हें छोड़ देना -जिन चरणों में केसर लगाना, बैठकर पूजा करना, चैत्यालयमें भंडार.रखना, प्रभुको जलौटपर रखकर कलश ढोलना, क्षेत्रपाल और नवग्रहोंकी पूजा करना, मन्दिरमें जुआ खेलना और पंखेसे हवा करना, प्रभुकी माला लेना, मन्दिरमें भोजकोंको आने देना, भोजकों.
१-मिथ्यात्व-खंडनसे तो ऐसा मालूम होता है कि बारह अध्यातमी मिले और तेरहवाँ अमरा भौंसा, इस तरह तेरह अध्यात्मियोंके कारण यह तेरहपंथ कहलाया। परंतु पन्नालालजी कहते हैं कि इन तेरह बातोंको छोड़ देनेसे तेरहपंथ हुआ।
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