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बुद्धिविलासे काफी बड़ा ग्रन्थ है, पर उसमें कोई सिलसिला नहीं है। जहाँ जिस विषयकी लहर आई है वहाँ वही लिख दिया है । आमेर और जयपुरका खूब विस्तारसे वर्णन किया है और वहाँके कछवाहे राजाओंकी वंशावली देकर उनके विषयमें अनेक कवियोंकी लिखी हुई प्रशंसाएँ भी उद्धृत की हैं । श्यामजी नामक ब्राह्मणके द्वारा, जो राजाका पुरोहित था, जैन मंदिरोंके नष्ट भ्रष्ट किये जानेका विवरण भी दिया है । एक जगह लिखा है जैसे बिल्ली और चूहोंमें बैरभाव है, वैसा ही.( बीस पंथका) बैरी तेरहपथ है ! बीसपन्थमेंसे तेरह पन्थ उसी तरह प्रकट हुआ जैसे हिन्दुओंमेंसे यवनोंका कुपन्श ! हिन्दुओंकी क्रियाएँ जैसे यवन नहीं मानते उसी तरह तेरड्पन्थियोंने भी क्रियाएँ मानना छोड़ दी । तेरहपन्थ ऐसा कपटी है कि वह भगवानसे भी कपट करता है और नारियलकी रंगी हुई गिरीको दीप कहकर चढ़ाता है !
३-पं० पन्नालालजी-बखतरामजीके बाद पं० पन्नालालजीका 'तेरहपंथखंडन' नामका ग्रन्थ है, जो पं० कस्तूरचन्दजी शास्त्रीकी सूचनाके अनुसार
न्हावन करत न विम्बको, इनि दै आदि अनेक । भली तजी खोटी गही. ते को कहै प्रतेक ॥ २९ तिनिकै गुरु नाहीं कहूँ, जती न पंडित कोइ । वही प्रतिष्ठी आदिकी, प्रतिमा पूजत लोइ ॥ ३० वे ही प्रतिभा ग्रंथ वै, तिनिमैं बचन फिराइ ।
ठानि औरकी और ही, दीनौं पंथ चलाइ ।। ३१ 1- इस ग्रन्थकी हस्तलिखित प्रति मुझे स्व. तात्या नेमिनाथपांगलने . सन् १९१० के लगभग बारसी : शोलापुर) के मंडारसे लेकर भेजी थी।
संवत अट्ठारह सतक, ऊपर सत्तास !
मास मागसिर पख सुकल, तिथि द्वादसी सरीस । २ -- जैसे बिल्ली ऊंदरा, बैरभावको संग । तै मेरी प्रगट है तेरापन्थ निसंग ॥ बीसपन्धत निकलकर प्रगटयौ तेरापन्थ। हिंदुनमसे ज्यों कढ़यौ यवनलोकको पंथ ।। हिन्दुलोककी ज्यों क्रिया, यवन न मान लोक । स तेरापंथ भी किरिया छोड़ी बोक। कपटी तेरापन्थ है, जिनसौं कपट करत । गिरी चहोड़ी दीप कहैं, खोटो मतको पंथ॥
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