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________________ ४९ इन्होंने सनातनकी रीति छोड़कर पापकारी नई रीति पकड़ ली। पहले दो बातें छोड़ीं, एक जिनचरणोंमें केसर लगाना और दूसरे गुरुको नमन करना । आमेरके भट्टारक नरेन्द्रकी र्तिके समय में यह पापधाम कुपन्थ चला। उस समय व्यापारके निमित्त कितने ही महाजन आगरे जाते थे और अध्यातमी बन आते थे । वें एक साथ मिलकर चुपचाप चर्चा किया करते थे । जयपुर के निकट सांगानेर पुराना नगर है । वहाँ अमरचन्द नामके एक.. ब्रह्मचारी थे । उनके निकट अनेक श्रावक धर्मकथा सुना करते थे, जिनमें एक गोदीका ब्येकका अमरा भौंसा था। उसे धनका बड़ा घमंड था, सो उसने जिनवानीका अविनय किया। इसपर श्रावकोंने उसे मन्दिरमेंसे निकाल दिया । इससे क्रोधित होकर उसने प्रतिज्ञा की कि मैं नया पंथ चलाऊँगा । उसे १२ अध्यातमी मिल गये, जिन्हें लालच देकर उसने अपने मतमें मिला लिया है एक नया मन्दिर बनवा लिया और पूजा-पाठ भी रच लिये । सं० १७०३ में इस तरह यह अघजाल मत स्थापित किया । राजाका एक मंत्री भी उसे मिल गया । उसने सहायता देकर और डरा धमकाकार इस पन्थको बढ़ाया । बखतरामजीका दूसरा ग्रन्थ बुद्धिविलास है जो गुणकीर्ति मुनिकी आज्ञासे सं० १८२७ में लिखा गया है । इसमें भी तेरहपंथकी प्रायः वही बातें हैं जो मिथ्यात्व-खण्डनमें हैं | मिथ्यात्व खण्डन में गुरुनमस्कार और केसर लगाना इन दो बातोंको छोड़ने की बात लिखी है, पर इसमें उनके सिवा लिखा है १ - केसर जिनपर चरचित्रो, गुरु नमिबो जग सार । ――― प्रथम तनी यह दोइ विधि, मन मद ठानि असार ॥ २३ २ - भट्टारक आमेरके, नरेन्द्र कीरति नाम । यह कुपन्थ तिनकै समै, नयौ चल्यो अघधाम ॥ २५ ३ - - तिनमैं अमरा भौंसा जाति, गोदीका यह व्योंक कहाति ॥ ३० धन गर अधिक तिन घरयौ, जिनवानीको अविनय करयौ ॥ तब बाक श्रावक विचारि, जिनमंदिर दयौ निकारि । - सत्रह सौ तिहोत्तरे साल, मत थाप्यो ऐसैं अघजाल ॥ ३४ ५ - भोजन तनिक चढ़ात नहिं सखरौ कहि त्यागंत । दीपककी ठौहर सबै, रंगिकै गिरी घरंत ॥ २८ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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