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________________ ४८ इस टिप्पणसे मी मालूम होता है कि उन्हें समयसारसे बहुत ही चिढ़ हो गई थी और वे यह बरदाश्त नहीं कर सकते थे कि कोई श्रावक उसे पढ़े। भावछत्तीसीके दोहोंमें भी नाटक समयसारकी उक्तियोंकी प्रतिध्वनि है । आगे हम दिगम्बर सम्प्रदायके उन लेखकों और उनके ग्रन्थोंका परिचय देते हैं जिन्होंने अध्यात्म मतका विरोध किया है। जिस तरह श्वेताम्बर विद्वानोंने अध्यात्म मतपर आक्रमण किये हैं उसी तरह दिगम्बरोंने भी । परन्तु दिगम्बरोंने उसे 'अध्यात्म मत' न कहकर 'तेरापंथ' कहा है। तेरापंथका विरोध १-पं० बखतरामजी-पं० बखतरामजी शाह चाटसूके रहनेवाले थे और जयपुर में आकर रहने लगे थे। उनके पिताका नाम पेमराज था। उनका बनाया हुआ 'मिथ्यात्व-खंडन नाटक' है, जो पूस सुदी पंचमी रविवार सं०. १८२१ को रचा गया था। उसका सारांश यह है__ पहले एक दिगम्बर मत था, उसमेंसे श्वेताम्बर निकला, दोनोंमें भारी अकस (अनबन ) हुई जिसे सभी जानते हैं | उसीमें बहस (तर्क) करके तेरहपंथ चल पड़ा । उसकी उत्पत्तिका कारण बतलाते हुए लिखा है कि पहले यह मत आगरेमें सं० १६८३ में चला । वहाँ कितने ही श्रावकोंने किसी पंडितसे कितने ही अध्यात्म ग्रंथ सुनें और वे श्रावकोंकी क्रियाओंको छोड़कर मुनियोंके मार्गपर चलने लगे, फिर उसीके अनुसार यह कामांमें चल पड़ा। १-ग्रंथ अनेक रहस्य लखि, जो कछु पायौ थाह । बखतराम बरनन कियो, पेमराज सुत साह ॥ १४०१ ॥ आदि चाटसू नगरके, बासी तिनकौं जानि । हाल सवाई जयनगर, मांझि बसे हैं यानि ॥ १४०२॥ २-'नाटक' नाम भर है, नाटकपन इसमें कुछ नहीं है । ३-अट्ठारहसौ बीस इक, सुभ संवत रविवार ।। पोस मास सुदि पंचमी, रच्यो ग्रन्थ यह सार ।। १४०७ ॥ ४-प्रथम चल्यो मत आगरे, श्रावक मिले कितेक । सोलहसौ तियासिए, गहि कितेक मिलि टेक ॥ २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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