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गुण नहीं लेते। जो अध्यात्मी बावन अक्षरोंको ही अच्छी तरह नहीं पहिचानते, भला वे आत्माको कैसे पहिचानेंगे !
आगे सवैया में मुलतान के अध्यात्मियोंने जो प्रश्न पूछे थे उनका उत्तर दिया है कि तुमने जो प्रश्न लिखे हैं उनके भेदभाव समझ लिये । वे तुम्हारे लिए उलझे हुए नहीं हैं, तुम्हें अपने पक्षके कारण सूझे हैं । तुम परमात्मप्रकाश, द्रव्यसंग्रहादिको मानते हो, अन्य ग्रन्थोंको प्रमाण नहीं मानते और अपने पक्षको खींचते हो । इसलिए अन्य आगमों के उत्तर तुम्हारे चित्तपर नहीं चढ़ते, लिखकर कितने हेतु और युक्तियाँ दी जायँ ? दूरसे भ्रम हो जाता है, कोई सैली नहीं कहता । बात तो तब बन सकती है, जब प्रत्यक्ष ज्ञानदृष्टि हो ।
आगे एक संस्कृत श्लोक ( काव्य ) है और एक दोहा । श्लोकके अन्तिम दो चरण अशुद्ध हैं और दोहेका भी तीसरा चरण । पर कोई विशेष बात नहीं कही है।
१ – तुम्ह जे लिखे हैं प्रश्न ताके भेद भाव बूझे, तुमहीसौं नांहि गुझे सूझे हैं सुपच्छ । मानो परमातमा प्रकास द्रव्यसंग्रहादि
और न प्रमाणो ग्रंथ ताणो आप पच्छसौं ॥ तार्तें और आगमके उत्तर न आवैं चित्त,
लिखिकै बतावें ते हेतु जुक्ति लच्छखौं । दूर हुं तैं भ्रम होइ सैली नांहि कहे कोइ,
बात तौ बने जो ग्यानदृष्टि है प्रतच्छत ॥ २ - युष्माभिर्लिखिता विचित्ररचनाप्रश्नाः परीक्षार्थिभिः केचिच्छास्त्रभवाः सुबोधविभवाः केचित्प्रहेलीमयाः । ते वो नो मिलना हते नहि कृते भ्रातो हते वः क्षमास्ते प्रत्युत्तरजाल मंगनमतो मीनौऽधुना नीयते ॥
३- तजै नाहिं विवहारकूं, भजै नाहि पछपात ।
बचूल (१) धेरै दुख ना हटै, सो भ्रम सूझ कहात ||
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