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तीसरी ' दिपट चौरासी बोल' छन्दोबद्ध हिन्दी रचना है । इसमें सन मिलाकर १६९ प हैं । यह पंडित हेमराजके ' सितपेंट चौरासी बोल ' नामक पद्य रचनाके उत्तर में लिखा गया है। इसमें भी नाम अध्यातमी दिगम्बरों के - मतभेदोंका बड़ी ही कठोरभाषामें खंडन किया गया है ।
यद्यपि इन तीनों ही ग्रन्थों में बनारसीदासका उल्लेख नहीं है, सर्वत्र ' अध्यातमी' ही कहा गया है, तथापि लक्ष्य उनके वे ही हैं । वे जो ' साम्प्रतिक अध्यात्ममत ' कहते हैं, सो भी यह बतलाता है कि बनारसीदासके सम्प्रदायसे ही उनका मतलब है और यह भी कि उससे पहले भी अध्यात्ममत था ।
यशोविजयजी उपाध्यायके उक्त तीनों ही ग्रन्थोंमें उनका रचना -काल नहीं दिया गया है, परन्तु श्रीकान्तिविजयजी गणिने जो कि उनके समकालीन थे अपनी 'सुजसबेलि भास नामक पुस्तक में लिखा है कि यशोविजयजीने सं० १६९९ में अहमदाबाद ( राजनगर ) में जब अष्टावधान किये, तब उनकी योग्यता देख कर एक धनी गृहस्थने उनके विद्याभ्यासके लिए धन देना स्वीकार किया और
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१- देखो, यशोविजय उपाध्यायरचित गुर्जरसाहित्यसंग्रह प्रथमभाग, पृ० ५७२- ९७ और श्री भीमसी माणिकद्वारा प्रकाशित प्रकरणरत्नाकर भाग १, पृ० ५६६-७४ ।
२ - हिन्दी होनेपर भी इसमें गुजरातीपन बहुत है। गुजराती शब्द भी बहुत है ।
३ - यह अभी प्रकाशित नहीं हुआ ।
४ -- हेमराज पांडे किए, बोल चुरासी फेर |
या विध हम भाषावचन, ताको मत किय जेर ॥ १५९
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५ - जस
' वचन रुचिर गंभीर नय, दिक्पट-कपट कुठार सम । जिन वर्धमान सो बंदिए, विमलज्योति पूरन परम ॥ १ भसमक ग्रह रज भसममय, ताथै बेसररूप । उठे नाम अध्यातमी, भरमञ्चाल अघकूप ॥ ११
६ - प्रकाशक, ज्योति कार्यालय, रतनपोल, अहमदाबाद |
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