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________________ : तक रहनेसे हिन्दी में भी उन्होंने कुछ ग्रन्थ लिखे हैं । उनकी अध्यात्ममतपरीक्षा, अध्यात्ममतखण्डन और दिक्पट चौरासी बोल नामकी तीन रचनाएँ अध्यात्ममत के विरोध में ही लिखी गई हैं। पहले ग्रन्थमें स्वोपज्ञ संस्कृतटीकासहित १८४ प्राकृत गाथाएँ हैं, दूसरा ग्रन्थ केवल १८ संस्कृत श्लोकोंका है और उसकी भी स्वोपज्ञ संस्कृत टीका है । पहले ग्रन्थ जैनसाधु उपकरण नहीं रखते, वस्त्र धारण नहीं करते, केवला आहार नहीं लेते, उन्हें नीहार नहीं होता, स्त्रियोंको मोक्ष नहीं, आदि दिगम्बरमान्य सिद्धान्तोंका खंडन किया गया है । अध्यात्मके नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चार भेद करके उन्होंने इस मतको नाम अध्यात्म ' संज्ञा दी है और एक जगह कहा है कि जो उन्मार्गकी प्ररूपणा करके बाह्य क्रियाकांडका लोप करता है वह बोधि ( दर्शन -ज्ञान-चरित्र ) के बीजका नाश करता है । ८ दूसरे ग्रन्थ में मुख्यतः केवली के कवलाहारका प्रतिपादन है और अन्तमें लिखा है कि मिथ्यात्व मोहनीय कर्मके उदयके कारण जो विपरीत प्ररूपणा करते हैं, ऐसे दिगम्बरों और उनके अनुयायी आध्यात्मिकोंको दूरसे ही त्याग देना चाहिए। इस तरह साम्प्रतकालमें उत्पन्न आध्यात्मिक मतके नष्ट करनेमें दक्ष यह ग्रन्थ रचा गया । ५ १ - आत्मानन्द जैन सभा भावनगर द्वारा प्रकाशित | २ - जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर द्वारा प्रकाशित | ३ -- लंपइ वज्झ किरियं जो खलु अज्झप्पभावकहणे णं । सो हाइ बोहिबीजं, उम्मग्गपरूवणं काउं ॥ ४२ ४ --- मिध्यात्वमोहनीय कर्मोदयवशाद्विपरीतप्ररूपणाप्रवणा दिगम्बराः तन्मतानुयायिनश्चाध्यात्मिका दूरतः परिहरणीया इत्यस्माकं हितोपदेश इति ॥ १६ ५ -- एवं साम्प्रतमुद्भवदाध्यात्मिकमतनिर्दलन दक्षम् । रचितमिदं स्थळममलं विकचयतु सतां हृदयकमलम् ॥ १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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