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________________ दिया। इस तरह बोध-वचनिका सर्वत्र फैल गई, घर घर नाटककी बातका बलान होने लगा और समय पाकर अध्यात्मियोंकी सैली बन गई। आगरा नगरमें कारण पाकर अनेक ज्ञाता हो गये जिनमें पं० रूपचन्द, चतुर्भुज, भगवतीदास, कुँवरपाल और धर्मदास मुख्य थे। रात दिन परमार्थ वा अध्यात्मकी चर्चा करनेके सिवाय इनके और कोई कथा नहीं थी। बनारसीबिलासका संग्रह · करनेवाले संघी जगजीवनने भी आगरेकी अध्यात्म-सैलीका उल्लेख किया है। पं० हीरानन्दने भी समवसरण विधानमें उस समयकी म्यानमण्डलीका जिक्र किया है जिसमें पं० हेमराज. रामचन्द्र, मथुरादास, भगवतीदास और भवालदासके नाम हैं । पं० द्यानतरायने ( वि० सं० १७५० के लगभग ) आगरेकी मानसिंह जौहरीकी और दिल्लीकी सुखानन्दकी सैलीका उल्लेख किया है । मुलतानमें रची गई वर्धमान-वचनिकाके कर्त्ताने भी सुखानन्दकी सैलीकी चर्चा की है। १-इहि बिधि बोध वचनिका फैली, समै पाइ अध्यातम सैली । प्रगटी जगमाहीं जिनबानी, घर घर नाटक-कथा बखानी ॥ २४ ॥ नगर आगरेमांहि विख्याता, कारन पाइ भए बहु ग्याता । पंच पुरुष अति-निपुन प्रबीने, निसिदिन ग्यानकथारस भीने ॥ २५ ॥ रूपचद पंडित प्रथम, दुतिय चतुर्भुज नाम । तृतिय भगौतीदास नर, कौरपाल सुखधाम ॥ २६ ॥ धरमदास ए पंच जन, मिलि बैठे इकठौर । परमारथचरचा करें, इनके कथा न और ॥ २७ ॥ इहि बिधि ग्यान प्रगट भयौ, नगर आगरेमाहि । देसदेसमें बिस्तरयौ, मृषादेसमै नांहि ॥ २८ ॥ २-समैजोग पाइ जगजीवन बिख्यात भयो, ग्यातनिकी मंडलीमैं जिहिको बिकास है ।ब० वि० पृ०-२५२ ३-देखो, परिशिष्ट, 'जगजीवन और भगौतीदास'। ४-आगरेमैं मानसिंह जौहरीकी सैली हुती, - दिल्लीमांहि अब सुखानंदनीकी सैली है। -धर्मविलास ५--अध्यातम सैली मन लाइ, सुखानन्द सुखदाइजी। -बर्धमान वचनिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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