________________
३६
इन तीन प्रकारके मनुष्योंमेंसे उन्होंने अपनेको मध्यम प्रकारका बतलाया है और बहुत ठीक बतलाया है
जे भाखहिं-पर-दोष-गुन, अरु गुन-दोष सुकीउ ।
कहहिं, सहज ते जगतमैं, हमसे मध्यम जीउ ॥ ६६८ अन्तमें कहा है कि इस बनारसी-चरित्रको सुनकर दुष्ट जीव तो हँसेंगे, परन्तु जो मित्र हैं वे इसे कहेंगे और सुनेंगे।।
बनारसीदासजीका मत ... बनारसीदासजीका जन्म श्रीमाल जातिमें हुआ था और यह जाति श्वेताम्बर सम्प्रदायकी अनुगामिनी है। उनके अधिकांश संगी-साथी और रिश्तेदार मी श्वेताम्बर थे। उनके गुरु भानुचन्द्रजी खरतरगच्छके जती थे। स्नात्रविधि, सामायिक, पडिकोना (प्रतिक्रमग ), अस्तोन (स्तवन ) आदि श्वेताम्बर क्रियाकांडके पाठोंको उन्होंने पढ़ा था और पोसाल या उपासरेमें वे नित्य प्रति जाया करते थे। बनारसीविलासकी कुछ रचनाओंमें भी श्वेताम्बरत्वकी झलक है।
आगरेके प्रसिद्ध चिन्तामणि पार्श्वनाथ और खैराबादके खैराबाद-मंडन अजितनाथके उन्होंने स्तवन बनाये थे-और ये बतलाते हैं कि वे श्वेताम्बर श्रावक थे।
जब वे अपनी ससुराल खराबादमें तीसरी बार (सं० १६८०) गये तब वहाँ उन्हें अरथमलजी ढोर नामके एक सज्जन मिले जो अध्यात्मकी
१--अर्घ-कथानक पद्य '५८६-८८ और ५९२-९३ ।
२-अ० क० के पद्य ५८३ में शान्ति-कुंथु-अरनाथका वर्णन श्वेताम्बर स० के अनुसार है। दि० स० के अनुसार अरनाथकी माताका नाम मित्रा
और लांछन मत्स्य होना चाहिए। उन्होंने सोमप्रभकी सूक्तमुक्तावलीका पद्यानुवाद अपने मित्र कँवरपालके साथ मिलकर किया है, जो श्वेताम्बर अन्य है। बनारसीविलासके राग आसावरी (पृ० २३६ ) में प्रसन्नचन्द्र ऋषिका उल्लेख भी श्वे० स० के अनुसार है। दिगम्बर कथा-कोशोंमें या अन्य कथा-प्रन्योंमें प्रसन्नचन्द्रकी कथा नहीं है। . ३-बनारसीविलास पृ० २४६ । ४-५० वि० पृ० १९३-९४ | खरतरगच्छ के शान्तिरंग गणिने सं० १६२६ में खैराबाद-पर्वजिन-स्तुतिकी रचना की थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org