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________________ न करनेवाले, मिष्टभाषी, सबपर स्नेह रखनेवाले, जैन धर्मपर दृढ विश्वास रखनेवाले, सहनशील, कुवचन न कहनेवाले, सुस्थिर चित्त, डावाँडोल नहीं, सबको हितकारी उपदेश देनेवाले, सुष्ट हृदय, जरा भी दुष्टता नहीं, पराई स्त्रीके त्यागी, और कोई कुव्यसन नहीं, और हृदयमें शुद्ध सम्यक्त्वकी टेक रखनेवाले। दोष बतलाते हुए लिखा है-क्रोध, मान और माया ये तीन कषाएँ तो जलरेखाके समान हैं, परन्तु लक्ष्मीका मोह (लोभ) अधिक है । घरसे जुदा नहीं होना चाहते। जप, तप संयमकी रीति नहीं, दान और पूजा-पाठमें कोई रुचि नहीं, थोड़े-से लाभमें बहुत हर्ष और थोड़ी-सी हानिमें बहुत चिन्ता । मुँहसे भद्दी बात निकालते लज्जित नहीं होते, शर्त लगाकर भाँडोंकी कला सीखते हैं, जो नहीं कहने योग्य है, उसकी कथा कहते हैं, एकान्त पाकर नाचने लाते हैं, नहीं देखी और नहीं सुनी हुई कथाएँ गढ़कर सभामें कहते हैं, हास्यरसको पाकर मगन हो जाते है और झूठी बातें कहे बिना जी नहीं मानता, अकस्मात् ही बहुत डर जाते हैं। . - ऊपर जो दोष और गुण कहे हैं, उनमेंसे कभी कोई और कभी कोई, जिसका उदय होता है, वह प्रकट हो जाता है। और उन गुण-दोषोंकी जो अगणित सूक्ष्म दशाएँ हैं, उनको तो भगवान् ही जानते हैं। उत्तम, मध्यम और अधम मनुष्य बनारसीदासने इन दोष-गुणोंके कयनको लेकर तीन प्रकारके मनुष्य बतलाये हैं १ उत्तम-जो दूसरोंके दोष छुपाकर उनके गुणोंको विशेष रूपसे कहते हैं और अपने गुणोंको छोड़कर दोष ही बतलाते हैं। २ मध्यम-जो परायोंके दोष-गुण दोनों कहते हैं और अपने गुण-दोष भी बतलाते हैं। ३ अधम-~जो सदा पराये दोष कहते हैं, उनके गुणोंको छुपा बाते हैं परन्तु अपने दोषोंको लोप करके गुणोंको ही कहते हैं । त ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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