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________________ वह केवल धनके लिए होता था जैसे कि नवाब कुलीचखाँने और आगानूरने जौनपुरके जौहरियोपर किया था और नरवरमें खरगसेनके पिताका घर-बार जप्त कर लिया था। पर ऐसी घटनाएँ तो राज्योंमें अक्सर होती रहती हैं। बादशाह अकबरने श्वेताम्बराचार्य हीरविजयका सत्कार किया था और उनके शिष्य भानुचन्द्रको अपना 'सूर्यसहस्रनामाध्यापक' बनाया था, अर्थात् उस समयके शासक केवल भिन्नधर्मी होनेके कारण प्रजापर अत्याचार नहीं करते थे और हिन्दुओंको बड़े बड़े ओहदे भी देते थे। अकबरकी मृत्युकी खबर सुनकर बनारसीदासको मूर्छा आ गई थी, यह उसके शासनकी लोकप्रियताका बड़ा भारी प्रमाण है। गुण और दोष .. अपनी आत्मकथाके ६४७ से ६५९ तकके १३ पद्योंमें बनारसीदासने अपने वर्तमान गुणों और दोषोंका एक तटस्थ व्यक्तिकी तरह बहुत ही स्पष्ट वर्णन किया है और यह उनके सच्चे अध्यातमी होनेका प्रमाण है। वे जैसे है वैसे ही अपनेको प्रकट करना चाहते हैं, कुछ भी छुपानेका प्रयत्न नहीं करते। यदि उन्हें ख्याति लाभ पूजाकी चाह होती, तो वे बहुत सहजमें पुज जाते और उस समयकी हजारों, लाखों, भेड़ोंको अपने बारेमें घेर लेते । न उन्होंने स्वयं अपनी महत्ताके गीत गाये और न अपने गुणी मित्रोंसे गवानेका प्रयत्न किया । त्यागी व्रती बननेका भी कोई ढोंग नहीं किया। आगरेमें वे एक साधारण गृहस्थकी तरह अपनी पत्नीके साथ अन्त तक आनन्दसे रहे-'विद्यमान पुर आगरे सुखसौं रहै सजोष ।' . गुणोंके वर्णनमें भी उन्होंने किसी तरहकी अतिशयोक्ति नहीं की है.-भाषा, कविता और अध्यात्ममें उनकी जोड़का कोई दूसरा नहीं, क्षमावान् और सन्तोषी। कविता पढ़नेकी कलामें उत्तम, विविध देशभाषाओंके (गुजराती, पंजाबी, ब्रज, बिहारी) में प्रतिबुद्ध, शब्द और अर्थका मर्म समझनेवाले, दुनियाकी चिन्ता १-जौनपुरके सूबेदार नवाब कुलीचखाँके प्रजापीड़नकी शिकायत जब बादशाहके पास पहुंची, तो उसे वापस बुला लिया गया और यदि वह रास्तेमें न मर जाता तो उसे कड़ा दण्ड मिलता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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