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________________ महीनेकी, रात छह महीनेकी और दिन कितनेका होगा, सो राम ही जानते हैं ! जहाँ विलासी जीव विषयमन है, वहाँ सूर्यका उदय अस्त कहाँ होता है ! इस तरह बहुत दिन बीत जानेपर जब सबलसिंहके बहनेऊ अंगनदास एक दिन रास्ते में मिल गये, तब इन्होंने अपना यह दुख उनको सुनाया और उन्होंने उसी दिन साहुके यहाँ जाकर सब कागज मँगाकर हिसाब साफ कर दिया और फारखती लिखा दी । बनारसीदासजीने वैभवशाली आगरा नगरके उस समय के एक विलासी साहूकारका यह वर्णन आँखों देखा ही नहीं, स्वयं अनुभव किया हुआ लिखा है ! ऐसे ही एक बड़े भारी धनी हीरानन्द मुकीम थे, जो जहाँगीर के कृपापात्र थे, जिन्होंने सं० १६६१ में प्रयागसे सम्मेदशिखरके लिए बड़ा भारी संघ निकाला था और १६६७ में आगरे में बादशाहको अपने घर बुलाकर लाखोंका नजराना दिया था । . धन्नाराय नामके एक धनी बंगालके पठान सुलतानके दीवान थे जिनके हाथ के नीचे पाँच सौ श्रीमाल वैश्य पोतदारीका या खजानेकी वसूलीका काम करते थे। इन्होंने भी सम्मेद शिखर की यात्राके लिए संघ निकाला था । शासनमें धार्मिक पीड़न नहीं अर्ध-कथानक में हुमायूँसे लेकर शाहजहाँ तक मुगलों और कई पठान राज्योंकी चर्चा आई है, परन्तु उससे यह नहीं मालूम होता कि केवल धर्मके कारण दूसरे धर्मकी प्रजाको सताया जाता हो । जैसा कि ऊपर बतलाया गया है, जहाँगीरने हीरानन्द मुकीमको और पठान सुलतानने धन्नारायको यात्रासंघ निकालनेमें सहायता दी थी और इन सबके समयमें सैकड़ों जैन मन्दिरोंकी प्रतिष्ठाएँ हुई थीं जो उस समय के शिलालेखों और प्रतिमालेखोंसे स्पष्ट हैं । बनारसीदासने नाटक समयसारमें लिखा है कि शाहजहाँ के समयमें इस ग्रन्थकी चैनसे रचना की, कोई ईति भीति नहीं व्यापी और यह उनका उपकार है'। इस तरह उस समय के और भी अनेक कवियोंने इन मुसलमान बादशाहोंके प्रति सद्भाव प्रकट किये हैं । किसी किसी नवाब और अधिकारीके द्वारा यदाकदा अन्याय होता था परन्तु १ - जाके राज सुचैन सौं, कीन्हों आगम सार । ईति भीति ब्यापी नहीं, यह उनको उपगार ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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